SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 336
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२४ जैनकथा रत्नकोष नाग पांचमो. याहि रे सूकर, लोकान्ब्रूहि मया जितो मृगपतिर्जानन्ति मे ज्ञा बलम् ॥५॥ अर्थः-एक वनने विषे सूवर तथा सिंह ए बन्ने नेला थया. त्यारे सिं हप्रत्ये सूवर कहे जे के, हे सिंह तुं घणा दिवसे मने मल्यो, माटे हवे मा री साथे वाद कर, अने जो वाद न करे तो एम कहे के, ढुं हास्यो, बने तुं जीत्यो, एटलुं कहीने पढ़ी जा. एवं वचन सांजली सिंहें विचायुं, जे था नीचनी साथै वाद करवो योग्य नथी. एम चिंतवी सूवरने कयुं के, अरे सूवर! तुं जा ने लोकोने कहे जे के में सिंहने जीत्यो अने सिंह हास्यो; परंतु हे सूवर जे विधान हशे ते मांहरी बुधिना बलने रूडी रीतें जाणे . कर्वा डे के,-'गह शूकर नई ते, वद सिंहो जितो मया ॥ पंमिता एव जानंति' सिंहशूकरयोर्बलम् ॥ १ ॥५॥ हवे नीचनो संग करवा कपर कागडांनो पांचमो दृष्टांत कहे जे. ॥नूपो वृक्तले स्थितस्तऽपरिस्थौ हंसकाको तदा, विटाकेन कृता नृपो परि शरं क्रोधान्नृपो मुंचतिलिम पदिपतेर्गतश्च बलिनुक् हंसोऽपतचूतले, तं दृष्ट्वाह नृपो मयोज्ज्वलतरो दृष्टोऽनुतो वायसः॥१॥ अर्थः-एकदिवसें कोइएक राजायें जाडनी हेठे पोतानो घोडो उनो राख्यो, अने पोते पण उनो रह्यो. एवामां तेज फाडनी ऊपर एक राजहंस तथा एक कागडो ए बन्ने पनि बेठां हतां तेमां कागडायें राजानां नज्वल वस्त्र देखीने तेनी ऊपर विष्ठा नांखी, तेनाथी वस्त्र खराब थयां, ते जो राजाने रीस चडी तेवारे कबाण जश्ने वाण फेंक्युं, ते वखतें कागडो उडी गयो अने ते बाण हं सने वाग्युं, तेथी ते हंस नीचे राजानी आगल आवी पडयो. तेनी सामे जोड्ने राजा बोल्यो के भावो उज्ज्वल कागडो में कोई दिवस जोयो नथी. ए अपूर्व वात देखाय . त्यारे हंस कहे जे के, हुँ कागडो नथी, हुं तो ज्वल हंस बुं; पण नीचना संगथी महारुं मृत्यु थयो . कह्यु बे के,-'नाहं काको महाराज, हंसोऽहं विमले जले ॥ नीचसंगप्रसंगेन, मृत्युरेव न सं शयः ॥ १ ॥ हंस तरंतो देखि के, तुं किम तरियो कग्ग ॥ तोरि पियारी जे करे, तले मुंडि पर पग्ग ॥ १ ॥ इति पंचम दृष्टांत ॥ ६ ॥ हवे जे जेतुं करे ते ते फल पामें ते उपर बहो चोरनो दृष्टांत कहे . ॥ उर्नेदाढयगृहेऽकरोनिशि हरः खातं च पद्मारुति, तन्मध्ये पितौ कमौ धनतृषा ज्ञातस्तदा स्वाधिपैः॥ यंतस्थैर्ग्रहणं पदोबहितरं मित्रैः कृतं
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy