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________________ षट्स्थान स्वरूपनी चौपाई. ३१० चरणकरण पहाणा, ससमय परसमय मुक्कवावारा ॥ चरणकरणस्स सारं, याति ॥ १ ॥ श्रीदशवैकालिक मध्येपण "पढमं नाणं त दया ” ए उपदेश बे. तिहां ज्ञान ते चारित्रोपयोगें षड्जीवनिकायानें संमु धपरिज्ञान एम जाली मनःसंतोष करवो. जेमाटे तेहनी हेतु स्वरूप प नुबंध्यादि शुद्ध करवी. ते परीक्षारूप निश्वयज्ञान विना न होय. नि श्वयज्ञाननेंज निश्चय चारित्र यावे. नक्तंच याचारांगे ॥ जं सम्मति पास हा, तं मोति पासदा ॥ जं मोति पासहा, तं सम्मति पासहा ॥ इत्या दि एम कहेतां गीतार्थ साधु क्रियादंत बे, तेने चारित्र नावे. कोइ कहे शे के, एम को कहो हो ? तेने कहियें के, जो गीतार्थ निश्चय न होय, तो नहींज यावे. जो गीतार्थनो निश्चय होय तो उपचारें चारित्र होयज. न तं ॥ गो य विहारो, बीउ गीयबनिस्स हो नलिउ ॥ इतो त विहारो, नाणुन्नाहो जिएलवरेहिं ॥ १२४ ॥ ॥ जिनशासन रत्नाकरमाथी, लघुकपर्दिका माने जी ॥ उदरि एह नाव यथारथ, आप सकति अनुमाने जी ॥ पण एहने चिंतामणि सरिखा, रतन न खावे तोलें जी ॥ श्रीनय विजय विबुध पय सेवक, वाचक जस इम बोले जी ॥ इति श्री सम्यक्त्व चतुष्पदी समाप्ता ॥ लोकगिरासमर्थित नय प्रस्थानपट्स्थानकव्याख्या संघमुद्दे यशोविजय श्रीवाचकानां कृतिः ॥ अर्थः- ( जिनशासन के० ) प्रकरण परिसमासें एटले जिनशासन रूप रत्नाकर ते मांहेथी ए पद्स्थानक नाव न इरिवं. ए उद्धार ग्रंथ यथार्थ a. जिनशासनरत्नाकरने लेखे ए ग्रंथ लघुकपर्दिका मान बे. अने रत्नाकरतो अनेक रत्नें खो . ए उपमा गर्व परिहारने खर्थे करीबे. पण शुनाव एवा विचारियें तो चिंतामणी सरखा रत्नपण एने तोले नावे. ग्रंथकर्त्ता गुरुनामांकित यश एवं पोतानुं नाम कहे छे, एटले श्रीनय विजय विबुधना पदनो सेवक वाचक श्रीयशोविजय उपाध्याय एणीपरें बोले बे ॥ १२४॥ इतिश्री सम्यक्त्व चोपई समाप्ता ॥ श्रीराजनगर एटले अहमदाबाद नगरने विषे तिहां प्रसिद्ध जे हेमश्रेष्ठित श्रीताराचंदनाना तेनी प्रार्थना थकी लोक जाषायें करी नयप्रस्थान एटले नयमार्ग तेणे करी षट्स्थानकनी व्याख्या श्रीसंघने हर्षने काजें श्रीयशोविजयजीनी कृति जाणवी ॥
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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