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________________ षट्स्थान स्वरूपनी चोपाई. ३०५ होय तेमाटे ए कल्पनामात्र ले. बीजं आत्मा सर्वव्यापक कहे जे, तेहने ए क सुखसंपतिनुं घर एवो किहां ठाम ? के ज्यां ए जाय. क्रियावत्त्वाना वान्नात्मनः सिदिदेवगमनश्त्यर्थः ॥ ७३ ॥ ॥ किम अनंत इक नामें मिले, पहिलो नहिं तो कुंग मुनले ॥पहिला नव के पहेला मुक्ति, ए तो जोतां न मिले युक्ति ॥ ॥ अर्थः- वली मोदमां अनंता सि६ मानो तो ते एकस्थानकें अनंता केम मले? जो प हेलो अनादिसि न मानो तो बीजा सिह थाय ते कोणमांहे नले ? प हेलो सिम नहीं तो कोण सिक्ने सर्व साधक नमे ? तेवारें पहेला संसार के पहेला मुक्ति ? प्रथमपदें मुक्ति सादि थर, एटले धादिसहित थइ? बी जे पदें बंधव्याघाते बंधविना मुक्ति केम होय? ए युक्ति जोतां मलतीनथी॥७४ ॥ जिहां न गीत न नाव विलास, नहिं शृंगार कुतूहल हांस ॥ तेह मु गतिथी कहे कपाल, वनमां जन्म्यो नली शृंगाल ॥ ५॥ अर्थ:-जि हां गीतगान नहीं, नावविलास नहीं, शृंगाररस नहीं, ( कुतूहल के ) ख्याल नहीं, ते मुक्तिमाहे गुं सुख हशे ? ते मुक्तीथी तो ऋषी कहे डे के, कपाल वनमाहे सीयाल जन्म्यो होय तो नलो ॥ वरं वृंदावने रम्ये, शृगालत्वं सदैव हि ॥ न तु वैशेषिकी मुक्तिं, मे मतिर्गतुमिन्नति ॥ ५ ॥ ॥नव अनिनिदि एहवा बोल, बोले ते गुणरहित निटोल ॥ जेहनें नहीं मुगतिकामना, बदु संसारी तेह उरमना ॥ ७६ ॥ अर्थः- नवयनिनंदि लक्षणवंत जे कह्या , ते मुक्ति उबापवाने एवा बोल बोले , तेने गु परहित कहियें, अने निटोल, निःश्रूक कहिये, जेहने मोदनी कामना ए टले वांडा नथी, ते उर्मना एटले माता मनवाला बदुल संसारी एटले अ जव्य अथवा कुर्नव्य कहियें. एतो जे चरमपुजलावर्त्तवर्ती होय, तेनेज मुक्तिकामना होय ॥ उक्तंच ॥ मुरकासनवि न तस्स, हो गुरुनाव मलप्प हावेणं ॥ जह गुरुवाहिविगारन, जा पहा ससम्मं ॥ ६ ॥ ॥ इंडियसुख ते उखनुं मूल, व्याधि पिंमिगण अतिप्रतिकूल ॥ इंडियन त्तिरहित सुख सार, उपसम अनुनवसिम नदार ॥ ७७ ॥ अर्थः-पहे लां मोद सुखरूप साधे , इंडियसुख जे जे ते उखनुं मूल , ते व्याधि प्रतिकार , कुधायें पीडित होय तेवारें जोजन करवं जनुं लागे, तृषायें होठ सूकायें, तेवारे पाणी पी नलु लागे, हृदयमांहे कामामी दीपे ते
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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