SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 302
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श जैनकथा रत्नकोष नाग पांचमो. मपरिणाम शुरु ने तेणेंकरी बुझ्ने पार' करावीयें, पोषीयें, तो सूजे ॥ उ तंच ॥ पुरिसं च विडूणकुमारगं वा, सूलंमि केई पम जाय तेए ॥ पिन्नाग पिंमस इमारुहिता, बुदाण ते कप्पर मारणाए ॥ २६ ॥ ॥ संघनगति अजमांसें करो, दोष नहीं तिहां इम उच्चरो॥ ए महोटुं बे तुम अज्ञान, जोजो बीजुं अंग प्रधान ॥ १७ ॥ अर्थः-तथा बोक डाने मांसें संघनक्ति करो डो, अने तेमां कांइ दोष नथी एम मुखें उच्चारो बो, ए महोटुं तमारं अज्ञान . ते विचारी जोजो ॥ नक्तंच श्रीसूयगडांगसू त्रे, यतः ॥ चूव्हरप्रश्हमारियाणं, दिनत्तं च पकप्परता॥ तलोणतने ण नवरकमित्ता, सविप्पजा पहर्ति मंसंतं नुंजमाणा मिसिथं पनूयणं, नवलिप्पा मुवयंरएण॥श्वेवमासुथराजधम्मा, अणायरिया याव रसे सु गिमा ॥ इत्यादि ॥ एम तमारे मतेंतो माताने स्त्री करी सेवतां पण दोषन लागो जोश्य. मंमलतंत्रवादी तो अगम्यागमनें पण दोष नथी केहेता. ए सर्व ज्ञान व्यवहारलोपक मिथ्यात्व ॥ ॥ ॥ हणिये जे परयाय अशेष, फुःख कपाश्बु ने संक्वेश ॥ एह त्रिविध हिं सा जिन कथी, परशासने न घटे मूलथी ॥ २॥ अर्थः-जिन श्रीवी तराग देवें कहेली हिंसा त्रए प्रकारें बे, तेमां एक तो जे मृगादि पर्याय ध्वंस करिये ते, तथा बीजी ते जीवोने कुःख नपजावq ते, त्रीजी पोता ना मनमांहे संक्वेश एटले मारवानो नाव धारण करवो, एत्रण प्रकारनी जे हिंसा ते जे एकांत नित्य अने एकांत अनित्य आत्माने माने बे, एवा जे परशासनी तेने मूलथी न घटे. जेमाटे मृग मरीने मृगज थयो. तिहां वि सदृश णनो पारंन क्या ? संतानैक्यनी अपेक्षायें व्यक्तिवैसदृश्य कहे तां तो इव्यैक्यज यावे. इत्यादि विचार ॥ २ ॥ ॥ निश्चयथी साधे हणनंग, तो न रहे व्यवहारें रंग ॥ नव सांधे ने बेटे तेर, ऐसी बौछतणी नव मेर ॥ श्ए ॥ अर्थः-निश्चय जे जुसूत्रनयने लश्ने कृष्ण साधे बते व्यवहार जे बंधमोक्षप्रत्यनिदानप्रमुख तेणें रंग रहे नही. एम बौछनी मर्यादामांहे 'नव सांधे ने तेर त्रूटे' ए उखाणो साचवे . अने निश्चय व्यवहार उजय सत्य ते स्याहादीज साधी शके ॥२॥ ॥ नित्यपणाथी नहिं ध्रुव राग, समनावें तेहनो नवि लाग॥ नित्यपणे फलहेतु संबंध, नहिं तो चाले अंधो अंध ॥ ३० ॥ अर्थः- बारमाने
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy