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________________ कर्पूरप्रकर, अर्थ तथा कथा सहित. बुं जाण्यु जे में पूर्वजन्में जे तप कयुं तेटला तपें तो सात जन मोहें जाय पण महारा तपमा सुसाधुसंगनो अनाव हतो. कहेलु के ॥ यतः॥ गा हा ॥ तामलित्तणे तवेण, जिणमय सिज्ज सत्त जणाण ॥ सो अन्नाण वसेणा, तामलि ईसाणइंद ग ॥ ११ ॥ गिरिपुष्पशुकाविवामलोंगी, गुणनाशोदयना ग जडझसंगात् ॥ जलदांबु विषं सुधा च न ‘स्यात्, कनकाशै च किमिदुकानने च ॥१२॥ अर्थः-(अमलोंगी के० ) निर्मल प्राणी, (जडझसंगात् के०) जडना अने ज्ञानीना संगथी ( गुणनाशोदयनाक् के० ) गुणनाश अने गुणोदय तेने नजनारो थाय ले. केनी पेवें. ( गिरिपुष्पगुका विव के०) गिरि अने पुष्प नामा बे पोपट जेम. जुवो (च के०) वली (जलदांबु के० ) मेघनुं जल, ते (कनकाशै के०) धंतुराना फाडनेविषे (विषं के०) विष (च के) अने (इदुकानने के०) शेरडीना वनमां (सुधा के ) अमृत (च के वली )किं के०) गुं (नस्यात् के०) न थाय ? ना थायज ॥१२॥ हवे गिरि अने पुष्पनामा बे गुकनीकथा कहे .चंपानगरीने विषे जितशत्रु राजा राज्य करे बे. ते कोइ दिवस विपरीत शिक्षित अबें बेठेलो तेथी अधे कुवाटें पमाड्यो पनी उग्रवनमां ते अश्व राजाने लगयो एटलामां एक फाडनी उपर पांजरामा रहेलो कोक चोरोनो पोपट चोरोने त्यां कहेवा लाग्यो के अरे चोरो, तमारे लुंटवा होय तो लपति माणस जाय ले माटे लुटी लुटो. ते सांजलतांज राजा त्याथी नाशीने एकदम तापसना आश्र ममां पेसी गयो. त्यां तापसनो गुक पांजरामा रहेलो हतो ते राजाने आवतो जो तापसो प्रत्ये कहेवा लाग्यो के हे मुनिवरो! राजा आवे ने अन्युबान करो, आसन मांझी थापो,याचमन आपो, आतिथ्य करो, था वां वचन ते पोपटनां सांजली राजा हर्षित थयो. एवं कौतुक जो शुकपा सें भावी राजायें शुकने पूब्युं जे एक पोपटें चोरोने कह्यु के था खाज जाय ले माटे बुंटो अने तुं कहे जे जे आ राजाने सन्मान आपो माटे ते केवी जातनो पोपट अने तुं केवी जातनो पोपट बो ? त्यां तापसनो शुक बेश्लोक बोल्यो के हे राजा! सांजव्य ॥ श्लोक ॥ माताप्येका पिताप्येको,
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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