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________________ कर्पूरप्रकर अर्थ तथा कथा सहित. बांही परदेशी राजानी कथा कहे . श्वेतांबिका नगरीनेविषे नास्तिक मतस्थापक प्रदेशीराजा राज्य करतो हतो. एक दिवस ते नगरीना उद्या नमा श्रीपार्श्वनाथना शिष्य केशीगणधर आव्या, त्यां प्रदेशीराजायें आवी प्रश्न पूज्यो के महाराज ! एकदिवस चोरें चोरी करी, तेने में निशिवमंजू षामां पूस्खो. पड़ी ते मरण पाम्यो त्यारे तेनो जीव क्याथी निसरी गयो ? एटले आत्मा तो बेज नही, एम ते दिवसथी हुँ मानुं बुं. ते वात सांजली गुरुयें जबाप प्राप्यो के बिइ विनानी पेटीमा बेशीने कोश्क पुरुष शंख व गाडे दे तो ते शंखनाद बाहेर रहेला जनो सानले ले के केम ? राजा बोल्यो के सांजले . त्यारें गुरु कहे के मंजूषामां बिइ तो पड्यां नही ने शब्द क्यां थी संजलायो? तेनो उत्तर कांपण राजायें दीधो नहीं. त्यारें गुरु कहे ले के हे राजन! एम चोरनो जीव. पंग मंजूषामांथी नीकली गयो माटे या .त्मा ने एम निचे जाणवू. या दृष्टांतें करी प्रदेशी राजा निःसंशय थयो अने नास्तिकमतनो त्याग करी अर्हतमतने स्वीकारी स्वर्गमा गयो ॥४॥ उत्सर्पिण्यवसर्पिणी:दितिमरुत्तेजोप्स्वसंख्या वने,ऽनंता. स्ता विकले गणेयशरदो जात्या विपल्या नयेत् ॥ स प्ताष्टौ तु नवांस्तिरश्चि मनुजे जीवोंऽतरेत्राऽस्य चे, धर्मस्तधरणेऽवत्स सुगतिं प्राप्नोति तिर्यपि ॥५॥ अर्थः- (जीवः के०) जीव, संसारनेविषे नमतो बतो (वितिमरुने जोप्सु के० ) पृथ्वी, तेज, तथा वायु अने जलने विषे (असंख्याः के०) असंख्याति ( उत्सर्पिण्यवसर्पिणीः के०) उत्सर्पिणी तथा अवसर्पिणी कालपर्यत जन्ममरणने (नयेत् के) पामे पड़ी ( वने के० ) प्रत्येक व नस्पतिअनंतकायनेविषे (ताः के०) ते (अनंताः के०) अनंतो कालपर्यंत रहे. ते पडी (विकले के०) बेंडी तेंही अने चरिंडीरूप विकलेंडियने विषे ( गणेयशरदः के० ) संख्यातावर्ष (जात्या के०) जन्में करीने अने (विपत्त्या के०) मरणेकरीने रहे अने (तिरश्चि मनुजे के ) तिर्यच अने मनुष्यने विषे (सप्ताष्टौ के०) सात आठ (जवान के०) नवने काढे. अ र्थात् सात बाउ नवपर्यंत रहे (तु के) वली (पत्रांतरे के०) आ ए पूर्वोक्त न वांतनेरोविषे(अस्य के०) आ जीवने जो (धर्मश्चेत् के०) धर्मप्राप्त थाय, (त
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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