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________________ कपूरप्रकर, अर्थ तथा कथा सहित. १५१ मानी तपःश्रुतशमव्रतधर्महीनः, स्यान्नंदिषेण व पण्यवधूपहासे ॥ किं तारकः कमलनूवरईरो ऽपि, नाकारि शंनुशिशुना हृतसर्वगर्वः ॥१२३ ॥ अर्थः- ( मानी के० ) जे अनिमानी मनुष्य होय, ते (तपःश्रुतशम व्रतधर्महीनः के० ) तप, शास्त्राध्ययन, समता, व्रत, अने धर्म, ते थकी हीन (स्यात् के० ) याय जे. केनी पेठे ? तो के (पण्यवधूपहासे के०) वेश्यायें करेला उपहासने विपे (नंदिपेण इव के०) नंदिषेणमुनि जेम थयो तेम, एटले वेश्याये नंदिपेणमुनिनो उपहास कस्यो जे तमे धर्मलान कहो डो पण अमारे तो धनलान जोश्यें आ सांजली कृषिने अनिमान आव्युं जे सारामां युं धन आपी शकुं एवी शक्ति नथी ?.एम विचारी तृ पारखलाना नंजनेकरी बारकोटि सोनामोरनी वृष्टि करी. तेथी तप अने शास्त्राध्ययन, समता तथा व्रत अने धर्म ते थकी चष्ट थयो.आ नंदिपेण मुनि श्रेणिक राजानो पुत्र हतो, वली (कमलनूवरपुरोऽपि के०) ब्रह्माना वरदानथकी ईर एवो पण (तारकः के०) तारकासुर दैत्य (हतसर्वगर्वः के ) हस्यो सर्वगर्व जेनो एवो (शंनुशिशुना के०) शिवपुत्र जे कार्तिक स्वामी तेणे (न अकारि किं के०) झुं अनिमानथी हीन न कस्यो॥१३॥ आ श्लोकमां नंदिपेण तथा कार्तिक स्वामिनो दृष्टांत होवाथी तेमां प्रथम नंदिपेणनी कथा कहे . राजगृही नगरीमा श्रीश्रेणिकराजानो पु त्र नंदिपेण हतो, ते श्रीवीरनगवाननी वाणी सांजली वैराग्य पामीने दीदा लेवा नजमाल थयो तेने जगवानें कह्यु जे हजी तारें नोगावली कर्मनो उदय ने माटे तुं हाल दीदा नेवी रहेवा दे, तो पण रह्यो नही शूरपणायें करीतप तपतां तेने अनेक प्रकारनी सब्धि प्राप्त था, एमक रतां बारवरसने अंते नोग्य कर्मनो नदय आव्यो, तेवारे ते मुनि विहार करतां अजाण्यां कोई वेश्याने घेर गया, त्यां साधुनी रीत प्रमाणे धर्मला न दीधो, त्यारे वेश्यायें कह्यु के, बाहिं अमारे तो धनलान जोश्य बियें, एम मशकरी करी. तेवारें मुनियें मनमां विचायुं जे झुं मारे धननी खो ट, एम अनिमान लावी, घांसनी सलीला तेना जीणा जीणा कटका करीने उपर उबाल्या, अने कहेवा लाग्यो जे आथी धनवृष्टि था, एवं बो
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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