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________________ कर्पूरप्रकर, अर्थ तथा कथा सदित. ५२ मांस,५३ सुरापान, ५३ वेश्या, ५५ पापर्षि, ५६ चोरी, ५७ परस्त्रीग मन, ५७ कपाय, एए क्रोध, ६० मान, ६१ माया,६२ लोन तथा सुस्त दिवसने विषे सत्कर्मनां वीश झार. एम सर्व मली व्यासी हार थयां ॥२॥ ____ हवे उपर लखेलां धारमा प्रथम सत्कुल हार कहे ले. कोऽपि स्याल्लघुकर्मकः सुकृतधीदेशेऽप्यनार्ये स्वत, स्तस्या प्याईकुमारवजुणचयः किंत्वार्यदेशाश्रयात् ॥ दाराब्धौ शशिनोऽथ कौस्तुनमणेः सा श्रीः कुतोयाऽनवत् , गं गाशालिनि शंनुमूर्ध्नि कमलागारे हरेश्योरसि ॥ ३ ॥ अर्थः-(कोपि के) कोइ पण (बधुकर्मकः के० ) लघु कर्मवालो जी व, (अनार्ये के० ) अनार्य एवा (देशेपि के ) देशनेविपेपण उत्पन्न थ यो बतो (स्वतः के०) पोतानी मेले (सुकतधीः के०) धर्मबुद्धि वालो जी व, ( स्यात् के० ) होय, (किंतु के ) तों पण ( तस्यापि के०) ते पुरुप ने पण (आर्यदेशाश्रयात् के०) आर्यदेशना आश्रयथकी (आईकुमारव त् के०) आईकुमारनी पेठे (गुणचयः के०) गुणनो संचय थाय , या ही दृष्टांत कहे . ते केनी पेठे ? तो के ( शशिनः के०) चंइमानी (गंगा शालिनि के०) गंगाथी शोजता एवा (शंखमूर्ति के ) शंनु एटले महादेव तेना मस्तकने विपे (अथ के० ) वली (कौस्तुनमणेः के०) कौस्तुनमणि नी (हरेः के वासुदेवना ( कमलागारे के०) लक्ष्मीने रहेवाना स्थान करूप एवा (नरसि के०) हृदयनेविपे (या के०) जे (श्रीः के०) शोना (अ नवंत के०) होती हवी, (सा के०) ते शोना (च के० ) वली (चाराब्धौ के०) कारसमुश्नेविपे (कुतः के०) क्याथीज होय ? अर्थात् होयज नही. एटले ते बेदु वस्तुनुं उत्पत्तिस्थानक तो दार समुज डे परंतु शिव अने विष्णुना आश्रयथी ते वेदु नुत्तम गुणसंचयने पाम्यां ॥ हवे अहीं आईकुमारनी कथा कहे ते. पूर्वनवने विपे आईकुमारे दीदा ग्रहण करया पनी कुलनो मद कस्यो. जे ढुं ब्राह्मण ढुं, ते शूना घरने विपे निदा ग्रहण केम करूं! ते वखत अनयकुमारने जीवें वास्यो तो पण म दनो त्याग न कस्यो. तेथी आगामि नवनेविषे नीच कुलमा अवतार थयो आदनराजाना घरनेविपे ते आईकुमार उत्पन्न थमहोटो थयो,त्यारे त्यां
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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