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________________ 229 जैनकथा रत्नकोष नाग पांचमो. ला गंधर्व गान करता हता, तिहां पोताना शय्यापालकने त्रिष्टष्ठ राजायें कयुं के हुं निशवश थानं तदनंतर गीतगान बंध करावजे, तथापि गीतगान मां लुब्ध थयेला ते शय्यापालकें राजाने निश याव्या पढी पण गान श रुरखायुं तेी राजा जागी गयो, अने कोपायमान थइने कहेवा लाग्यो केष्ट ! तें मारा कहेवाथी उलटुं करूं ने कसकिने ली तें गान शरु रखायुं माटे तुं शिक्षापात्र बो एम कहीने ते शय्यापालकना कानमां शीयुं तपावीने रेड्युं. तेथी ते मरण पामीने नरके गयो ने त्रि पृष्ठ राजानो जीव अनुक्रमें केटला एक जव संसारमां करी चोवीशमा तीर्थ कर श्री वीरजगवान थया. ते वखत शय्या पालकनो जे जीव हतो ते अनुक्रमें गोवा लियो थयो . पूर्वजन्मना वैद्यकी ते गोपालें श्रीवीरना कानने विषे कटा हवंश शिलानुं देपण करूं ते मरण पामीने नरके गयो. ए प्रमाणें त्रिष्ट ष्टि राजाना शय्या पालकनी कथा कही ॥ ३ ॥ स्यात् कुनकानिधकुमारवदस्थिरेपु, स्थैर्याय गीतम पिबोधकरं कदाचित् ॥ बालोपि निर्वृतिमुपैति निशम्य सम्यक मात्रोदितानि कलमन्मथगीतकानि ॥ ए४ ॥ अर्थः- ( स्थिररेषु के० ) अस्थिर पदार्थोंने विपे ( स्थैर्याय के०) स्यै माटे ( गीतमपि ० ) गीत पण ( कदाचित् के० ) क्यारेंक ( कुल्नका निधकुमारवत् के० ) कुल्लक नामा कुमारनी पेठें ( बोधकरं के० ) बोध क नारुं ( स्यात् के० ) होय. ( बालोपि के० ) बालक पण ( मात्रोदितानि के० ) मातायें कहेलां एवां ( कलमन्मथगीतकानि के०) मनोहर कामं गी तो ( सम्यक् के) रूडे प्रकारें (निशम्य के०) सांगतीनें (निर्वृत्तिं के० ) निर्वृतिने ( उपैति के० ) प्राप्त थाय अर्थात् सुगीतथी पण बोध थाय बे ॥ श्लोकमा कुलककुमारनो दृष्टांत होवाथी तेनी कथा कहे बे. पूर्वै चंपापुरीने विषे वज्रबाहु राजा राज्य करे बे, केटला एक कालें राजा मर ए पाम्यो तेनो नाइ वज्रजंघ राजा राज्यगादीयें वेतो तेवारें वज्रबाहु रा जानी स्त्री पोताना पुत्रना संरक्षणने माटे पुत्रने लइने त्यांथी नाशीने म थुराम यावी सुरिजीनी पासे पुत्र सहित प्रव्रज्या ग्रहण करीने एक सा ध्वनी पासें रही, तेनो कुल्लककुमार पुत्र श्रीगुरुनी पासें शास्त्रने जातो
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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