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________________ २०६ जैनकथा रत्नकोष नाग पांचमो. रथकी मन नतस्युं ने स्वस्वरूपमां मन तल्लीन यतां यतां एलाची पुत्रने वंश उपर रह्यां रह्यांज केवल ज्ञान उत्पन्न ययुं पढी त्यां शासन देवतायें श्रावी रजोहरणादिक साधुनो वेश थाप्यो. त्यांज एलाचीपुत्रं देशना दे वामांमी. राजादिकने प्रतिबोध व्याप्यो ॥ ८८ ॥ मातुर्गर्भावतारे चतुरधिकदशस्वप्नसंसूचितौ प्राक्, जातौ यावेकरात्रौत्वजितसगरयोः पुष्ययोः पश्य जातिं ॥ आग जोत्पादमित्रैरसुरसुरनरैः सेवनीयस्त्रिलोकी नाथोऽर्दनेक आसीदनरतनृपनतोऽन्यच चक्री द्वितीयः ॥ ८ ॥ अर्थः- ( प्राक् के ० ) पहेली ( मातुः के०) माताना (गर्भावतारे के ० ) गर्ना तारने विषे (चतुरधिकदशस्वप्नसंसूचितौ के ० ) चनद स्वप्तायें करी नाग्यसं पत्तिवाला एवा (यौ के०) जे बेदु (एकरात्रौ के०) एक रात्रिने विप्रे ( जातो के ० ) उत्पन्न थया ते (तुके०) वली (पुण्ययोः के०) पुण्यशाली एवा (अजितसग यो: के०) श्री अजितनाथ तीर्थंकरनी अने सगरचकीनी (जातिं के० ) जातिने हे नव्यजनो ! ( पश्य के०) जुवो (एकः के० ) एक श्री अजितनाथतो (आग त्पाद के०) गर्ने रवाना प्रारंभथी ते उत्पत्तिपर्यंत (इं: के० ) इंड्रोयें तथा (सुरसुरनरैः के०) असुर देवो तथा मनुष्योयें ( सेवनीयः के० ) सेवन क वायोग्य ने (त्रिलोकीनाथ : के०) त्रण लोकना नाथ एवा (एकः के० ) एक ( o ) तीर्थकर थया ( च के० ) वली (अन्यः के० ) अन्य ( द्वितीयः के० ) बीजा ( नरतनृपनतः के० ) भरत क्षेत्रना राजाउने नमस्कार करवा लायक एवा ( चक्री के० ) चक्रवर्त्ती थया ॥ ८९ ॥ चाहिं श्री अजितनाथनो तथा सगरचक्रवर्त्तीनो दृष्टांत होवाथी प्रथम श्री अजितनाथ तीर्थकरनी कथा कहे बे. शावस्ती नगरीने विषे जितशत्रु रा जा तेमनी विजया नामे राणीना पुत्र श्री अजितनाथ भगवान ते ज्यारें गर्ज मां ह्या त्या तेमनी मातायें वृषनादिक चन्द स्वप्नो दीवां तथा प्रभुजी गर्भगत थया, ते दिवसथी राजा साथै विजया राणी रमे तो तेमां राणीज जीतवा लाग्यां. त्यारे राजायें विचायुं जे या प्रभाव एना पेटमा गर्न र हेलो बे तेनो जावो परंतु कांहि मंत्रतंत्रथी राणी जींतती नथी. माटे प्रसवथया पढी तेनुं नाम अजित पाडगुं. पठी जन्मथया नंतर जन्मोत्सव
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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