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________________ (६ जैनकथा रत्नकोष नाग पांचमो. सुप्रापं शुरूपात्रं धनमपि विशदं किंतु निप्पुण्यकानां, नो वित्तं पात्रदानं प्रति नवति मतिर्यत्र शुद्धाशनायैः॥आयो ऽन् वर्षमेकं प्रतिदिनमगमतुझ्नैोऽपि देशे, श्रेयांस स्त्वेकमायं सुकृतिपु कृतवान् स्वं प्रनोः पारणेन ॥१॥ अर्थः-जे दानयकी ( यत्र के०)जे वित्तने विपे ( शुभाशनायेः के०) शुभ एवा अशनादिकोयें करी दान देवानी (मतिः के०) बुद्धि, उत्पन्न थाय तथा तेवू दान अने (शुहपात्रं के०) गुरुपात्र, (सुप्रापं के० ) प्राप्त थयेल्लं होय तथा ( धनमपि के०) इव्य पण (विशदं के) शुरू होय (किं तु के० ) तो पण ( निष्पुण्यकानां के ) पुण्य रहित जनोनुं (वित्तं के०) व्य, ते (पात्रदानंप्रति के०) पात्रदान प्रत्ये (नोनवति के ) यतुं नथी. त्यां दृष्टांत कहे जे के (आद्योऽर्हन के०) आदिनाथ जे श्री रुपनदे वजी तीर्थकर ते, (वर्षमेकं के ) एक पर्ष पर्यंत, (शुध्नेदयेऽपि के०) शुभ ले नेदय एटले अन्न जेमां एवा (देशे के०) देशने विपे (प्रतिदि नं के० ) प्रतिदिन ( अगमत् के० ) जता हवा, परंतु गुम अशनादिक कोयें पारणा माटे आप्युं नहिं. अने (सुकृतिषु के०) एक सुरुतिजनने विपे कृतार्थ एवो (श्रेयांसस्तु के०) श्रेयांस राजा जे ने तेज (आद्यं के०) अदन करवा योग्य ( एकं के० ) एक एवा (स्वं के० ) पोतानी पासे रहे ला शेरडीना रसने (प्रनो के०) श्रीयादिनाथना (पारणेन के० ) पारणा ने कराववे करीने सार्थक (कृतवान् के०) करतो हवो ॥ ७१ ॥ आंहिं श्रेयांस राजानी कया कहे . गजपुर नगरने विपे बद्मस्थ अंव स्थायें विहार करता एवा श्रीकृषनदेवजी मध्याह्नने समय निदाने माटे नमे ले परंतु ते समये निदा ते वली गुं? अने कोण निदाचर होय. ते वात कोइ पण जाणतुंन हतुं, एवामां पोताना घरनी चंची बारीमाथी श्री श्रेयांस कुमार श्रीरुपनदेवजीने जोया. ते जोता वेंतज ते श्रेयांस कुमारने जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न थयुं, तेवारें श्रेयांसकुमार त्यांथी उठी प्रनु पासें जश्ने प्रनुने पोताने घेर तेडी लाव्यो. तेवामां कोक जन घणा एक शेर डीना रसना कुंन नेट लाव्यो. तेज शेरडीना रसथी प्रनुने पारणुं कराव्युं ते समय पांच दिव्य प्रगट थयां आकाशमांथी सुवर्णनी वृष्टि थइ. कहे
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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