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________________ श्री सम्यक्त्वसित्तरी. ३२१ रास्ता प्रणावी. एम श्रीजिनधर्म आराधि श्रीजिनवचन उपर यस्ता धरतो तें अनशन जइ सुरनिवनने विषे जइ देववृंदने प्रतिबोध देतो हु वो. ए या स्तिक्यनामा समकेतलक्षणने विषे पद्मशेखर राजानुं दृष्टांत कयुं. इति महोपाध्याय श्रीचं गणि शिष्योपाध्याय श्रीशांतिचं गणित शिष्य श्री रत्नचंग लिविरचित श्रीसमक्त्वरत्नप्रकाशनामनि सम्यक्त्वसप्ततिका बा लावबोधे सम्यक्त्वलचणस्वरूपनिरूपण नामाऽष्टमोधिकारः संपूर्णः ॥ ८ ॥ हवें प्रकारनी जया राखवी, तेनुं नवमं अधिकार कहे बेः॥ परतिबियाणं तदे, वयाण तग्गहिय चेश्याएं च ॥ जं बविहवावारं, न कुइसा बहा जयणा ॥ ४६ ॥ अर्थ : - ( परतिबि के ० ) परतीर्थी से अन्यतीर्थी मिथ्यादर्शनी जे तापस पारिव्राजकादिक तेने तथा ( तदेवया एग के० ) तेना देव जे हरि, हर, ब्रह्मादिक तेहने तथा ( तग्गहिय के० ) तेणें ग्रहण करया एवाजे श्री अरिहंतना ( चेश्याांच के० ) चैत्य प्रतिमा ते ( जं०) जे (दिवावारं के० ) षड्विध व्यापार एटले व प्रकार नो व्यवहार (नकुइ के० ) न करे ( सा के० ) ते ( बविहाजयणा के० ) कारनी जया एटले यत्ना कहीयें, एम सिद्धांतना जाए कहे बे. हवे ते प्रकारनां नाम कहे बेःਰ -- ॥ वंदा नसणं वा, दाणाणुप्पयागमेसि वजे ॥ खाजावं संजावं, पुमानित्तगो न करेइ ॥ ४७ ॥ अर्थः- एक (वंदा के ० ) वंदन, बीजुं ( नसणं के० ) नमस्कार, ( वा के० ) वली त्रीजुं ( दाए के० ) दान चो (अप्पयाण के० ) अनुप्रदान ( एसि के० ) ए चार वा परतीर्थ प्रमुख विषे ( वजेर के० ) वर्डे, तथा पांचमो ( खाला वं के० ) खाताप ने बडो ( संजावं के०) संलाप एवा व प्रकार, पू aa परतीर्थ प्रमुख विषे न करवा. तिहां जे ( पुवमा लित्तगो के ० ) प्रथ मनालापक एटले पहेलुं बोलाव्याविनानुं तेनी सायें बोलवं, ते (ए क रेइ के०) करे नहीं, एटले बोलाव्यो बोले ते खालाप कहीयें, जे कारण माटे बोलाव्या पठी तो श्रीगौतमस्वामीयें पण जगवती प्रमुख सूत्रनेवि पे प्रश्नना उत्तर याप्या बे, तथा मया प्रमुख श्रावकें पण उत्तर श्रा प्या बे, एम जगवती प्रमुख सूत्रोनेविषे देखीयें बैयें ॥ यतः ॥ तेषं काले ४१
SR No.010248
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1890
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size45 MB
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