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________________ श्रीमोदविवेकनो रास. रहे प्रवृत्ति पियु पास रे ॥व०॥ क्षण अंतर अलगी रही, जेम तनु बाया । क वास रे ॥व० ॥ ए ॥ रात दिवस उनी रहे, खिजमतगारी मनखंत रे ॥व०॥ सकल काम संसारनां, साधे नव नवी नंत रे॥व०॥१०॥ प्रवृत्ति नारी मन मंत्रवी, वश कीधो आपणो नाथ रे ॥व०॥ निवृत्ति नणी आ वा न दे, सदु सरखो मिलियो साथ रे ॥व०॥ ११ ॥ उवट चाल्यो मंत्रवी, जीव घात करे निशंक रे ॥व०॥ मृषा बोले धन हरे, परदारा सेवे वंक रे ॥व॥१॥ नव नव परिग्रह मेलिया, मद मांस नखे दिन रात रे ॥व०॥ परोही मोही दुळ, आरंनी दंनी जात रे ॥व०॥ १३ ॥ वार्तध्यानी आ करो, वली शेह तणा परिणाम रे ॥व०॥ तंउलमत्स्य सगी परें, दूर ध्या नी यातु जाम रे ॥व०॥१४॥ तेली बेलतणी परें, खरवृत्ति समाडे जूर रे ॥ व ॥ ज्युं तरुवरने उखेडिने,वाहे बदु जलनुं पूर रे॥ व ॥ १५ ॥ माया मन हरखी घj, हवे मंत्री अमारे सार रे ॥ ॥ सोहागिणी बात्री तिका, जेणें वश कीधो जरतार रे ॥ व० ॥१६॥ सर्वगाथा ॥१३॥ ॥दोहा॥ ॥ मायासेंती मन मल्यो, हवे केहने ए पाड ॥ नन्हलियो जलनिधि जिस्यो, हवे केही तसु आड ॥ १ ॥ पवने प्रेस्यो अनि ज्युं, मयगल मातो जेम ॥ प्रेयो जल्यो वाजि ज्यं, धावे इत उत तेम ॥२॥ पंम पन्नग त णे,क्युं कुपथानो रोग ॥ विख लेप्यो ज्युं तीर ए, तिम मन माया योग ॥ ३ ॥ थाको थलमें दुवे नहिं, नवि बूडे जलपूर ॥ सांसीणो न दुवे क दा, पर्वत चढे सनूर ॥४॥ अग्निमांहि नमतो थको, न वले सबलो वेग ॥ अलख अगोचर संचरे, नवि पामे उद्वेग ॥ ५॥ रमु पास जंजीररां, न विडं बांध्यो जाय ॥ मंत्र यंत्र औषध करी, वश क्युंही नवि थाय ॥६॥ धाम काम रामा रमा, नेली कीधी नूर ॥ नृपति न पामे सिंधि ज्युं, लख आवे जलपूर ॥ ७ ॥ ॥ ढाल पातमी॥ ॥ घर बांगण सुर तरु फल्यो जी ॥ ए देशी । मेमत्त मंत्री चिंतवे जी, हवे मुफ हाथे राज ॥ राजा परजा मो वशु जी, आनंद अधिको आज ॥ कर्मगति कठिन कही जिनराज ॥ १ ॥ ते निज श्रवणे सांजली जी, नवि जन नावमें बाय ॥ क० ॥ एमांकणी ॥ राय वधारयो हाथज्यु जी, नाना
SR No.010248
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1890
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size45 MB
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