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________________ २० जैनकथा रत्नकोप नाग त्रीजो. ॥ दोहा ॥ ॥शीप स्वाति जल कण लही, मोती धारे जेम ॥ निवृत्ति नारी जन मियो, गुन लक्षण सुत एम ॥ १ ॥ नानी सुबुदिनणी दूत, मनमां हर्ष अपार ॥ नाम विवेक दीयो जलो,सब जनमां सुखकार ॥२॥ विमल कमल कोमल तनु, नीलवट टीको नूर ॥मोह इस्यो तम जीपवा, अभिनव कग्यो सूर ॥३॥ राजा रलियायत थयो, रंग ढंग तसु देव ॥ संग जलो एनो सही, रत्न विवेक विशेष ॥॥ परम प्रतीत पवित्र तनु, अनुपम कुंवर विवेक ॥ परम क्षिप्रापतिकरु, ए सम अवर न एक ॥ ५॥ खेलावे खंतें करी, राजा अवसर पाय ॥ सुबुदि मने सुख ऊपजे, आनंद अंग न माय ॥ ६॥ माया जुर्बुदि प्रवृत्तिने, मनमां थयो विषाद ॥ निवृत्तिने बेटो दूर, वधशे वाद विवाद ॥ ७॥ विष वैरी पावक क्षणो, अल्पेशं नित हाल ॥ बांधी में कांश हवे, पाणी पहेली पाल ॥ ७ ॥ रखे राजा मंत्री नणी, मलशे वारं वार ॥ तो बाजी हाथाथकी, जाशे पहेले पार ॥॥ मोह विवेक बेहू रमे, देखे राजा हंस ॥ बेदु प्रवृत्ति मले नहिं, ज्युं वायस ने हंस ॥ १० ॥ ॥ ढाल सातमी ॥ ॥ केश्क वर लाधो ॥ ए देशी ॥ माया बुंदि वे मली, मन चिंते एह विचार रे॥ वश करजे वारु ॥प्रवृत्ति नणी इणिपरें कहे, शीख सांजल पुत्री सार रे ॥व॥१॥ तुं चतुरा चपला घj,नवि जाणे उमा नेद रे॥व०॥ शांत दांत तुज शोक्य डे, तसु पुत्र दुवो गयो खेद रे ॥ व० ॥ २॥ पुत्र वती प्रिया मानीयें,घर सघलुं तेने हाथ रे ॥वण॥ पुत्रपखें शी पनिणी, स ही पुत्र अ घर आथ रे ॥व॥३॥ पुत्र विवेक दुआ पड़ी, नृप मंत्री बे दु एह रे ॥व०॥ निवृत्ति जणी आदर करे, बानो न बिपे कदी नेह रे ॥व० ॥॥ आज पडी तुं पियुप्रत्ये, तन मन वचनें एकांत रे ॥व०॥ नाव नक्ति एम साचवे, जेम वश दुवे तुझ कांत रे ॥३०॥५॥ निवृत्तियकी मन उत रे, कां करजे एवी वात रे ॥व०॥ कर्म क्रिया केलवे नली, मुफ वाघे अं गनी धात रे ॥ २० ॥ ६ ॥ निवृत्तितणे वारे अजे, तुम जेम करे ते लाज रे ॥व०॥ शोक्यतणी शंका किसी, ए शीख धरे मन आज रे ॥व०॥७॥शो क्य शूनी वली सायणी, वलगी न नली तुं जाण रे॥व०॥ शोक्य कही शू ली जिसी, युं कहिजे तेह वखाण रे ॥व०॥॥ शीख इसी परें सांजली,
SR No.010248
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1890
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size45 MB
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