SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सम्यक्त्वसित्तरी. १५१ कारण विना मंत्र, यंत्र ने तंत्र प्रमुख कोइने करी थापे, निमित्त कहे, तथा औषधादिक उपचार करे, तेने चारित्र कुशील कहियें. संसक्त एटले जेम बलदनी खागल तेना खाणनो सुंडलो राख्यो होय, ते खाल ते बलदें खाधुं होय, तेथी ते सुंडलो कांइक बिष्ट खाल श्री खरडायेलो होय, ने कांइ अनुतिष्टथी खरड्यो होय. तेम जे कांइक मूलगुण तथा उत्तरगुणनो विराधक होय ने कांइक व्यविराधक होय. तेने संसत्तो जावो. तेना वे नेद बे:- एक संक्लिष्ट ने बीजो संक्लिष्ट. मां जे पांच श्रवनेविषे प्रसक्त होय, त्रण गारवें करी प्रतिबद्ध होय, कोई गृहस्थ तथा गृहस्थिलीना बोकरा डोकरीनी चिंता करे, खाने तेना दुःखें डुःखी ने तेना सुखें सुखी थाय तेने संक्लिष्ट संसक्त कहियें, तथा कोइ पास मले तो पोतें पण तेनी सायें पासो बनी जाय, संवेगी मले तो संवेगी जेवो थइ जाय, एवी रीतें जे जेवो मले तेनी साथै स्फटिक मणि नी पढें अथवा तेलनी पठें तेवो यह जाय. तेने संक्लिष्ट संसक्त कहियें. हादवि कहे बेः- “ नस्सत्त मायरंतो, वस्तुत्तं चैव पसवेमाणं ॥ एसोहु प्रहानंदो, इवाबंदोत्ति एगठा " नावार्थ:- जे पोतानी इब्बायें चाले, तेनेवा बंद कहियें. हवे 'कुग्गह हयाणं ' खोटे हवे करी हणायेला, जे कदाग्रहनी शास्त्र साख दिये नहिं, तथा सुविहित शुद्ध प्ररूपक याचा ये पण साख दिये नहीं एवो हठ पकडीने बेसी रहे, पोतानो हठ मूके नहीं, तेने कुग्रह हत कहियें. एवाना 'नम्मग्गुवएसेहिं ' एटले उन्मार्गना उपदेशें कर (बलाव के ० ) बलात्कारपणे प्रथमथीज ( ए सम्मं के० ) ए स म्यक्त्व ( मलिक के ० ) मलिन थाय बे, माटे तेवानी देशना प्रमुख पण सांजली नहीं. केम के, नरसी वात सांनव्याथी पण पाप लागे बे. जेम मशिनो घणो संग करनारना कपडां कालां थायले. तथा लशण खाधाथी मुख गंधाय बे, तेम एवानी संगत करवाथी सम्यक्त्व मलीन थाय बे ॥११॥ : ॥ एनी ऊपर जमालीनुं दृष्टांत कहे बेः- “खाजी वगगणनेया, रक्त सिरिं पयहि काय जमाली ॥ हियमप्पणी करितो, नयवय पिके इह पडतो " ३ ति उपदेशमालायां ब्राह्मणकुंम गामनी पश्चिम दिशाने विषे एक क्षत्रियकुंम ना गाम बे. त्यां जमाली नामनो छत्रिय प्रति ऋद्धिमान होतो ह वो. ते जगवंत श्रीमहावीरस्वामीनी पुत्रीने परस्यो. तेनी सायें पांचे इं
SR No.010248
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1890
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy