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________________ ६. जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. राय, पण मोमो मध्य खाली गय ॥ हवश्मंगलं कहेतां तेह,कंणो पण पूरो थाय एह ॥ ५॥ बीजे पण बहु ग्रंथें सुण्यु, गुरु परंपरायें पण मुण्यं ॥ ए क नवकार कहे गुन नाव, सागर सातनुं फेडे पाव ॥६॥ जो नमो अ रिहंताणं गणे, पाप सागर पञ्चासनु हणे ॥ जो संपूर्ण गणे नवकार, पांच शे सागर पापनिवार ॥७॥ यतः ॥ नवकार इक अरकर, पावं फेडे सत्तय यराइं॥ पन्नासं च पएणं,सागर पणसय समग्गेणं ॥१॥ आठ कोडी ने वलि लख यान, यात सहस असत वली पाठ॥गणतां शाश्वत थानकलहे, ए अधिकार जिनेश्वर कहे ॥ ७ ॥ यतः ॥ अवय असया, असहस अफ लरक कोडीन॥ जो गुएनतिजुत्तो, सो पावई सासयं गाणं ॥२॥ शिवकु मार ने वली श्रीमती, श्रीजिनदास श्रावक गुनमति ॥एहनीया नव पूगी आश, परनव पण नवि थाय निराश ॥ए ॥ चंमपिंगल हुंमक बिद्ध चोर, जे करतां नित्य पाप अघोर ॥ ते पण सुरपद पाम्या वही, महिमा ए नव कारनो सही॥१०॥ श्रीश्रीपाल नरिंद वली जुन, ए नवपदयी नीरोगी दु॥ एम शास्त्रे कह्यां बहु विरतंत, ते कहेतां नवि आवे अंत ॥ ११॥ जंबुद्धी प अनाहत देव, पूरव नव करी नव पद सेव ॥ ए सवि श्रुतखंधमांहीरह्यो, महिमा नवि जाये को कह्यो ॥१२॥ एहज चौद पूरवनो सार, ग्रंथें जा रख्यो श्रीनवकार ॥ चौद पूरवना अरथ जे कह्या, पहेला पदमां अरिहंत लह्या ॥ १३ ॥ ते अरिहंत पण साधे सिह, बीजा पदमां तेह प्रसि ॥ सूत्र तणा करता गणधरा, ते त्रीजे पदें सूरिवरा ॥१४॥ सूत्र तणा कह्या पाठक जेह, चोथा पदमां जांख्या तेह ॥ सूत्रमांही कह्यो जे निरुपाध, मारग साधे तेहज साध ॥ १५॥ तिवं नवकार पूरवनो सार, जगत जी व सदुने हितकार ॥ चौद पूरवी गरढा थया, सूत्रारथ उपयोगी न नया ॥ १६ ॥ अंतश्रवस्थायें श्रीनवकार, तेहने पण होवे आधार ॥ए नव कार समो नहिं मंत्र, हे सदु मणिमंत्र ने यंत्र ॥ १७ ॥ खलने बोलण योग्य झुं नहिं, नूख्यो अ॒ नवि खाये ग्रही ॥ व्यापारीने नहिं परदेश, वज अनेद्य किस्युं सुविशेष ॥ १७ ॥ शी वस्तु जगमां ने जेह, जे नवपद साधे नहिं तेह ॥ ऋदि वृद्धि दिये था नव घणी, अनुक्रमें पदवी मोदज तणी ॥ १५॥ एम सांनलीने चंकुमार, जक्तं शीखे श्रीनवकार ॥ विचस्यो मुनिने करी प्रणाम ॥ अनुक्रमें पहोतो कुसुमपुरें गम ॥ २० ॥ मांझयो
SR No.010247
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1890
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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