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________________ ४, सिंदूरप्रकरः अर्हतां नावपूजा कार्यो । कुर्वतां च यत्पुण्यमुत्पद्यते तत्पुण्यप्रसादात् उत्त रोत्तरमांगलिक्यमाला विस्तरंतु ॥ १०॥ नाषाकाव्यः-वृत्त उपर प्रमाणे ॥ देवलीक ताको घर अंगन, राजरिधि सेवें तस पाइ ॥ ताके तन सोनाग आदि गुन केचि विलास करें नित था॥ सो नर तुरत तरै नबसागर, निरमलं हों। मोपद पाइ ॥ दरव नाव विधि सहित बनारसि,जों जिनवर पूजे मन लाइ.॥ १० ॥ __ वली पणं जावपूजा, फल कहे जे. ॥शिखरिणीटन्तम् ॥ कदाचिन्नातंक कुपितश्व पश्य त्यनिमुखम्, विदूरे दारिद्र्यं चकितमिव नश्यत्यनुदि नम् ॥ विरक्ता कांतेव त्यजति कुंगतिः संगमुदयो, न मुंचत्यन्यर्ण सुहृदिव जिनार्चा रचयतः॥११॥ • अर्थः-( जिनाचा के०) श्रीवीतरागनी वंदनादि नावपूजाने (रचय तः के०) करता एवा पुरुषोने (आतंकः के०.) नय, ते (कदाचित् के०) को वखत पण (अनिमुखं के०) सन्मुख (न पश्यति केए)जोवे .ते केनी पेठे ? तो के जेम को (कुपितश्व के०) कोश्नी उपर कोपायमान थयो होय ते तेनी सामुं न जोवें, तेनी पेठे याही पण जागी बु. तथा (दारियं के०) दारिजे जे ते तेनाथी (अनुदिनं के०) निरंतर (विदूर के०) घणेज दूर (नश्य ति के०) नासे ,अर्थात् तेनाथी दारिद्र्य दूर जाब ने, केनी पेठे ? तो के (च कितमिव के०) ते दारिश्य जाणीचे नयनीत थयुं होय नहिं ? तेनी पेलें. वली (कुगतिः के०) नरकादि मुगति, ते पुरुषना (संगं के०) समीपपणाने (त्यज ति के०) त्याग करे जे. एटले तेने मकी देने, केनी पेठे? तो के (विरक्ता के०) विरक्त थयेली एवी (कांतेव के०) स्त्री जेम होय तेनी पे. अर्थात् जेम विरक्त स्त्री, स्वामीना संगनो त्याग करे , तेनी पेठे. वली ( उदयः के०) अन्युदय, जे प्रताप, ऐश्वर्या दिक. ते (अन्यर्ण के!) ते पुरुषना समीपपणाने (नमुंचति के) न मूके डे, केनी.प्रेजें ? तो के ( सुदिव के०) मित्रनी पेठे. ए कारण माटें अर्हत्प्रनुनी नावपूजा जे वंदनादिक ते करवा नोग्य बे, माटे हे नव्यजनो ! ए प्रकारे जाणीने मनमां विवेक लावीने श्रीजिन वरनी नावपूजा करवी. करताएवासुजन पुरुषोने जेपुण्या इत्यादि पूर्ववत् ११
SR No.010246
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1867
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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