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________________ २३० जैनकथा रत्नकोष नाग पढ़ेलो. गयो. तेनी नजर पडतांज छत्रीनी दाढानो थाल खीररूप. थंयों. तेने ज मवा लाग्यो, ते जोइ परगुरामंना रखवाला ब्राह्मणो तेने मारवा माटें दोड्या, तेमने मेघनाद विद्याधरें त्रास पमाड) मारी नाख्या. परशुराम पण ते वान सांजी तिहां यान्यो अने सुनूमने मारवा माटें परशु च लाव्यो, ते पशु सुमनी दृष्टियें पडतांज अंगारानी माफक उलवाइ गयो, ने सुनमें परशुरामनी ऊपर थालंज उपाडीने मूक्यो, ते थाल फीटीने चक्ररत्न थयो, तेणें परगुरामनुं मस्तक बेदी नाख्युं. पी जेम परशुरामें सात वार निःक्षत्री पृथ्वी करी, तेम परशुरामना वैरी सुनू में एकवीरा वार निर्ब्राह्मणी पृथ्वी कीधी, कोइ पण जाणमां रही यो एव ब्राह्मण जीवतो राख्यो नहिं. चक्ररत्नने बलें व खं पृथ्वी साधी ने चक्रवर्त्ती यो. पढी लोजनो वाह्यो थको धातकी खंमनुं भरत क्षेत्र सा धवा माटें लवणसमुमांहे चर्मरत्न ऊपर कटक चडावीने लव मुम हे चालतो थको वचमां अधिष्ठित सर्व देवोयें सहाय यापवाने पडतो मू क्यो, तेथी समुइमां मूबी मरण पामी अनेक जीवहिंसाना पातकें करी सातमी नरके गयो || इति जंतुघात विषे बहुपाप परिग्रहालक्त सुनूमच क्रीनी कथा समाप्त ॥ ॥ हवे बीजा प्रश्ननो उत्तर एक गाथायें करी कहे बेः ॥ ॥ गाथा ॥ तव संजम दाल रखें, पयईए जद्दन किपासून ॥ गुरुवयण र निच, मरिनं देवे सो जाइ ॥ १८ ॥ नावार्थ:- जे जीव, तप, संयम ने दान तेने विषे रक्त होय, संहंज प्रकृतियें नक परिणामी हो य, कृपालु दयावंत होय, गुरुना वचन उपर निरंतर रक्त होय, गुरुना क ह्या प्रमाणें चाले, ते जीव मरीने देवलोकमां जइ ऊपजे ॥ १८ ॥ जेम आनंद श्रावक तपस्या करी प्रतिमा च्यादरी, दान देइ, श्रीमहावीरदेव गु रुना वचन ऊपर निरंतर रक्त, दयावंत, नक परिणामी थको अवधिज्ञा न पामी देवपदवी पाम्यो, माटें ए बीजा उत्तरंयायी आनंद श्राव " कथा कहे . वाणिज्य नामा ग्रामें जितशत्रु राजा राज्य करे बे. तिहां खानंद ना में गृहस्थ रहे बे. तेनी शिवनिंदा नामें स्त्री बे. घरमां बार कोड सुवर्ण बे, दश हजार गायनुं एक गोकुल, एवां चार गोकुल बे, वली ते गामथी ईशा
SR No.010246
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1867
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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