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________________ १२ - जैनकथा रत्नकोष नाग पदेलो. थयो. विक्रमादित्यने कहेवा लाग्यो के हे वत्स! तुं गुणा बे, राजा जेवो देखाय डे, दूरदेशांतरथी आव्यो देखाय डे, ढुं तहारी करेली नक्तिथी संतोष पाम्यो j! माटें परकाया प्रवेशकारिणी विद्या ले. ते वचनो सां नली राजा बे हाथ जोडी बोल्यो के हे स्वामी ! ए विप्रने पण आपनी सेवा करतां घणा दिवस थया, माटें जेम महारी उपर तुष्टमान थया, तेम एनी उपर पण तुष्टमाने थइ विद्या आपो. तेवारें सिंदेश्वर बोल्यो के हे परफुःखनंजक सत्पुरुष ! सपने दूध पीवराववाथी शो फायदो थाय ? तो पण राजायें घणी प्रार्थना करी प्रणिपत्य करीने ब्राह्मणने पण विद्या अपावी. पली राजा तथा ब्राह्मण बेदुने विद्या साधवानो विधि कह्यो, ते प्रमाणे विद्या साधी; विदा सिह करी गुरुनी आज्ञा मागी राजा अने ब्राह्मण वेदु उऊयणीनी बाहेर याव्या, ते वखत राजांयें ब्राह्मणने त्यांज बेसाड्यो अने पोतें राज्य स्थिति जोवा नणी नगरीमांहे आव्यो, तिहां. प्रथम प्रजाना समाचार जो पबी राज्यमंदिरमां आव्यो. तिहां पट्टहाथीना मरणथी राजलोक भाकुल येला दीठा. राजा फरी ब्राह्मण पासें याव्यो. विद्यानी परीक्षा करवा सारु पोताना शरीरमांहेथी जीव काहाडी निर्जीव काया करी ते कलेवर विप्रने नलावी अने पोतानो जीव हाथीना खोलिया माहे जई घाल्यो, तेथ। हाथी तत्काल उनो थयो. राजलोक सर्व हर्ष पाम्या. एवामां दुष्ट बुद्धिथी विप्र विचारवा लाग्यो के जो हूं हमणां महारो जीव राजाना शरीरमांहे प्रवेश करावं, तो राजा बनी राज्यपालुं ? एम विमासी तत्काल विद्यानुं स्मरण करी राजाना शरीरमांहें पोतानो जीव घाल्यो, पो तानी काया प्रज्वन करीने नगरमांहे आव्यो. लोकोयें राजा थाव्यो देखी वधामणां करयां, राज्यमंदिरमा जइ सनामांहे बेठो, परंतु जातें ब्राह्मण ने माटें राज्य स्थितिनी रीत जात कांइपण जाणतो नथी. तेने जंगली हरणना जेवो देखी प्रधान प्रमुख चिंतववा लाग्या के ए शुं राजानुं चित्त चलाचल थयुं ने! अथवा कोई व्यंतर विशेष राजानुं रूप करी आव्यो के के गुं थयुं ! एम विचारवा लाग्या. पली जेवारें अंतेउरमां ते ब्राह्मण आव्यो, तेवारें पट्टराणी तो तेने देखतांज मूळ पामी तेने घणा नपचार करी दासीयें उठाडी बेठी कीधी, तेवारे कत्रिम राजा बोल्यो के अहो देवि ! मुझने देखी तमें मूळ केम पाम्यां? ते सांजली राणीने पण तत्काल बुद्धि उपनी, तेथी एवं बोली
SR No.010246
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1867
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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