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________________ जैन ज्योतिर्लोक सूर्य, चन्द्र मादि के विमानों का प्रमाण सूर्य का विमान योजन का है। यदि १ योजन में ४००० मील के अनुसार गुणा किया जावे तो ३१ ४७३३ मील कर होता है। एवं चन्द्र का विमान योजन अर्थात् ३६७२१६ मील का है। • शुक्र का विमान १ कोश का है। यह बड़ा कोश लघु कोश से ५०० गुणा है । अतः ५०० x २ मोल से गुणा करने पर १००० मील का आता है। इसी प्रकार आगे ताराओं के विमानों का सबसे जघन्य प्रमाण : कोश अर्थात् २५० मील का है। । (देखिये चार्ट नं० ४) इन सभी विमाना को वाहल्य (मोटाई) अपने २ विमानों के विस्तार से प्राधो-पाधो मानी है। राहु के विमान चन्द्र विमान के नीचे एवं केतु के विमान सूर्य विमान के नीचे रहते हैं अर्थात् ४ प्रमाणांगुल (२००० उत्सेधांगुल)प्रमाण ऊपर चंद्र-सूर्य के विमान स्थित होकर गमन करते रहते हैं। ये राहु-केतु के विमान ६-६ महीने में पूर्णिमा एवं अमावस्या को कम से चन्द्र एवं सूर्य के विमानों को आच्छादित करते हैं। इसे ही ग्रहण कहते हैं।
SR No.010244
Book TitleJain Jyotirloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Jain Saraf, Ravindra Jain
PublisherJain Trilok Shodh Sansthan Delhi
Publication Year1973
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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