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________________ जैन ज्योतिर्लोक अपनी-अपनी जगह पर ही स्थित हैं। इसलिये वहाँ दिन रात का भेद नहीं दिखाई देता है। पुष्करवर समुद्र के सूर्य चन्द्रादिक पुष्करवर द्वीप को घेरे हुये पुष्करवर समुद्र ३२ लाख योजन का है। इसमें प्रथम वलय पुष्करवर द्वीपकी वेदी से ५०००० योजन आगे है । इस प्रथम वलय से १-१ लाख योजन की दूरी पर आगे-आगे के वलय हैं । अंतिम वलय से ५०००० योजन जाकर समुद्र की अन्तिम तट वेदी है। __इस पुष्करवर समुद्र में ३२ वलय हैं। प्रथम वलय में २५२८ सूर्य एवं इतने ही चंद्रमा हैं । अर्थात् बाह्य पुष्कर द्वीप के कुल मिलकर १२६४ सूर्य थे उसके दुगुने २५२८ होते हैं । अगले समुद्र के प्रथम वलय में दूने होते हैं । पुनः प्रत्येक वलयों में ४-४ सूर्य-चंद्र बढ़ते गये हैं । इस प्रकार बढ़ते-बढ़ते अन्तिम बत्तीसवें वलय में २६५२ सूर्य एवं २६५२ चंद्रमा होते हैं। पुष्करवर समुद्र के ३२ वलयों के सभी सूर्यों का जोड़ ८२८८० है एवं चन्द्र भी इतने ही हैं। असंख्यात द्वीप समुद्रों में सूर्य चन्द्रादिक इसी प्रकार प्रागे के द्वीप में ८२८८० से दूने सूर्य, चंद्र प्रथम वलय में हैं और आगे के वलयों में ४-४ से बढ़ते जाते हैं। वलय भी ३२ से दूने ६४ हैं।
SR No.010244
Book TitleJain Jyotirloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Jain Saraf, Ravindra Jain
PublisherJain Trilok Shodh Sansthan Delhi
Publication Year1973
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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