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________________ ( ५० ) "इस कोष्ठक में पाठक देखेंगे कि युक्त प्रान्त में गंगेरवाल, वडेले, चरैया, पोरवाड़ आदि कितनी ही जैन जातियां ऐसी हैं जिनकी संख्या ५०० से कम है और जो समग्र भारत में भी १००० से कम हैं । दि० जैन डाइरेकरी से विदित होता है कि केवल दि० संप्रदाय में ४१ जातियां ऐसी है जिनकी संख्या ५०० से १००० तक है: २० ऐसी हैं जिनकी १००० से ५००० तक है और १२ जातियां ऐसी हैं जिनकी संख्या ५००० से अधिक है। इनके अतिरिक्त ऐसी भी कई जातियाँ हैं जिनकी सख्या २० से लेकर २०० तक के बीच में है। ऐसी जातियां बढ़े वेग से कम हो रही है यह दश वर्ष में श्राधी व एक तिहाई हो जाती हैं।.. इसका कारण यह है कि इन में विवाह बड़ी कठिनाई से होते है । विवाह का क्षेत्र छोटा होने से श्रोर गोत्र आदि को अधिक भंझटों से प्रायः वे मेल विवाह करने पढ़ते है। और इस प्रकार के विवाहों से जन संख्या की वृद्धि में कितनी रुकावट पड़ती है यह बतलाने की जरूरत नहीं ।" ( जैनहितैषी ४५२ ) "बुट्टेले " जाति की जन संख्या सन् १६१७ में =२६ थी। इन में ४५४ पुरुष थे और ३७२ स्त्रियाँ ! इनमें कुल १७८ स्त्रीपुरुष विवाहित अर्थात् दम्पतिरूप में हैं विधवायै ४ हैं । ४५ वर्ष से कम उमर के ७३ पुरुष ओर १३१ । बालक, इसतरह कुल २०४ पुरुष विवाह योग्य हैं। परन्तु कन्याओं की संख्या कुल १०० ही है । अर्थात् इस जाति के १०४ पुरुषोंके भाग्यमें जीवनभर बिना स्त्रीके ही रहना लिखा है । इसके उपरान्त जो इस जाति की गणना मुशकिल से दो साल के बाद की गई तो वह मात्र ७७७ही संख्या में निकली। इसमें पुरुष ४२६ व स्त्रियों ३४= निकलीं ! अविवाहित बालक
SR No.010243
Book TitleJain Jati ka Hras aur Unnati ke Upay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherSanyukta Prantiya Digambar Jain Sabha
Publication Year
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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