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________________ (२६) व्यापारी को मिटाते जारहे है। इसके लिए देश विदेशों में धूम कर और अनुभव प्राप्तफरफे नए व्यापारीको चलाना चाहिये। इस प्रकार को उद्योग सस्था, धनियों को पोलना चाहिये जिनमें समाज के निरुद्योगो युवकों को शिल्प, व्यापार, कृषि आदि कार्य सिखाए जॉय । और उनके जीवन निर्वाह मुगम चन जाय। पांचवे स्वास्थ्य और उच्चशिक्षा की ओर से उदासीनता में मुख्य सहायक उपरोक्त कारण हैं। निर्धनता के कारना, इनकी ओर ध्यानही नहीं दिया जाता। स्वास्थ्य कितना गिरा हुश्रा है यह हमारा ह्रास ही कह रहा है । औसत आयु केवल पच्चीस वर्ष की है। इसमें मुख्य कारण जैनियोंमें उचित श्रम न करने का है। वे दुकानदारी करते हैं और सुबह से शाम तक गद्दी तकिये लगाए बैठे रहते हैं। परिश्रम कुछ करते नहीं। इस कारण सामान्य भोजन भी हजम होता नहीं । यही दशा स्त्रियों की है। वह गृहस्थी के कार्यों से मुँह चुराती हैं। अतएव स्वास्थ्य वर्द्धन के लिये आवश्यक है कि उचित व्यायाम की व्यवस्था की जावे। पुरुषों के लिए व्यायाम शालाये खोली जावें। जिन में उनको शरीर रक्षा की विविध देशो कलायें सिखाई जावे। और वे बलवान बन सके। सिवों के लिये भी पीसना कूटना श्रादि गृहस्थी के कार्यों के अदिरिक प्रति दिन स्वच्छ वायु सेवन का प्रवन्ध होना चाहिये। उच्च शिक्षा की भी यही दशा है। निर्धनता में यह प्राप्त नहीं है। 'व्यापारी जाति होने पर भी २०० पुरुषों में से ५० ही लिव पड सकते हैं। यूरुप के देशों में तथा जापान अमेरिका में ८० सेम फो सैकडा नो पुरुष लिखे पड़े हैं। यहां पर १०० स्त्रियों में केवल दो ही पढ़ी हुई हैं। और वे
SR No.010243
Book TitleJain Jati ka Hras aur Unnati ke Upay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherSanyukta Prantiya Digambar Jain Sabha
Publication Year
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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