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________________ (२५) यालक वानिकाओं को शिक्षा में उतना न खर्च होताजितना उनके विवाह पर होना है। स्त्रियाफेग्न होतेसमय हाशियार दाई, सफाई, औषधि, अच्छे आहार और जापे के पीछे और बालक के उत्तम पालन के लिए उत्तना खर्च नहीं करते जितना “साद में', कडा हलली बनाने में, गाना बजाना करवाने में और जाति में मिठाई गने में हाटा है। वीमार की टहल, श्रौषधि को अपना उसकी मृत्यु पर मोलर करने में पचास गुना ज्रादह खर्च किया जाता है। धर्म प्रचार आचरणसुधार मानदान, स्कूल, पाठशाला, कन्याशाला, छात्रालय, छात्रवृत्ति, और अच्छी पुस्तकों के प्रचार में इतना खर्च नहीं होता जितना वेश्या नृत्य में, श्रनिरावाजी में, जल्ले उत्सवों में होता है। (जैन संसार) . अतपब इन अनावश्यक अयोग्य कायों में व्यर्थ व्यय किए जानेले दिनपर दिन धन-घटता चला आरहा है और घटताही रहा नो बिलकुल दरिद्री बना देगा और नष्ट कर देगा। इसलिए इस प्रकार का आन्दोलन जाना गहिए जिससे बच्चे २ को इस दशा का परिचय हो जावे। और प्रत्येक पचायत में इस प्रकार के नियम यन, जाना चाहिये जिससे उपरोक्त प्रकार के व्यर्थ व्यय बन्द होकर उचित प्रकार से धन खर्च किया जासके जिससे समाज का हित हो। यह व्याह शादियो, योनारों श्रादि की तरह तरह की फिजत चियां एक दम उठा-देना चाहिये।.इस निर्धनता से बचकर हमें अपने पुरखो की सुख समृद्धशाली दशा प्राप्त करने के लिए व्यापार में जी जान से लग जाना चाहिए। मामूली दुकानदारो-दलाली-को हो व्यापार नहीं समभाना चाहिए । प्रन्युत नये २ व्यागारों की ओर दृष्टि दौडाना चाहिए। नये दंग के व्यापार पुराने ढंग के
SR No.010243
Book TitleJain Jati ka Hras aur Unnati ke Upay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherSanyukta Prantiya Digambar Jain Sabha
Publication Year
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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