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________________ ( १५ ) यह तो प्रकट हो है कि जैरजाति जीवित, नोरोग ओर धनवान जाति नहीं है क्योंकि सम्पत्ति शास्त्र के बेत्ताओं का कथन है कि ऐसो सर्भसम्पन्न जाति २५ वर्ष में दुगुसी हो जानी है। मादयस साहब ने सप्रमाण सिद्ध किया है कि यदि खाने पोने की सुविधा हो तो हर देश की जनसंख्या हर पचीसवे साल दुनो होजाती है । परन्तु जैनसमाज इस स्वाभाविक वृद्धि को उपेक्षा करके उल्टो घटी ही है; इससे प्रमाणित होता है कि उसके काम के कारण उसके सामाजिक जीवन में ही विद्यमान है । श्रतएव इन कारणों को वहीं ढूंढना और प्रकट करना Tags है, वही उनके दूर करने के उपाय सोचे जा सकते है। विचार करने से कहना होगा कि जैनसमाज के नाश होने के मुख्य कारण निम्न प्रकार हैं: १ श्रनागारसंव- साधु महात्माओं का लोप, जैसे कि पहिले देख श्राप है । २ योग्य मनुभ्य गुणों का अभाव जिसका कारण शेष बातें हैं । ३ देवो कोप ( प्लेगादि रोग ) 2 निर्धनता वा दरिद्रता । ! पास्थ्य ओर उच्चशिक्षा की ओर से उदासीनता । ६ यान्य विवाह । ७ वृद्ध विवाह । ८ अनमेल विवाह । ६ व्यभिचार । १० पुरुषों का अविवाहित रह जाना । ११ छोटी २ जातियों का होना और अपनी जाति के यतिरिक्त अन्य जाति में विवाह न करना । 1 1 1
SR No.010243
Book TitleJain Jati ka Hras aur Unnati ke Upay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherSanyukta Prantiya Digambar Jain Sabha
Publication Year
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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