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________________ * जैन जगती 20GOSpeect * अतीत खण्ड आती हमें है. कुछ हँसी जब देखते इतिहास है; उसमें हमाग कुछ कहीं मिलता न क्यों आभाष है। ये आधुनिक इतिहास वेता अज्ञ हो, सो हैं नहीं; तब राग, मत्सर, द्वेष से वं कर रहे ऐसा कहीं ।। ३३६ ॥ जिनधर्म क्षत्री-धर्म था, संदेह इसमें है नहीं; यदि विज्ञ हो तो लेख लो वह सूत भारत की मही। फिर क्यों नपुंसक आज के हैं दोप हमको दे रहे ? अपनी नपुंसकता छिपाकर भीत हमको कह रहं ॥ ३४० ।। ___ जैन धर्म का इतर धर्मों पर प्रभावऐसा न कोई धर्म है, जिसने न माना हो हमें; वैदिक, सनातन, सांख्य ने जाना कभी से हैं हमें। तुगलक ३२१-मुगल ३२२ सम्राट पर इसका असर कैसा हुआ ? गौराङ्ग २ 3 जन के हृदय पर कैसा अमर शाश्वत हुआ ? ॥३४१।। पतन का इतिहास सम्राट थे, हम भूप थे, सम्पन्न थे, अलकेश थे; विद्या, कला, विज्ञान में हम पूर्ण थे, निःशेष थे। नित पुष्प यानों पर चढ़े सर्वत्र हम थे घूमते; सब राज लोकों के हमारे यान नभ थे चूमते ।। ३४२ ।। पर काल-चक्र कुचक्र के सब वक्र होते काम हैं; थे सभ्य हम सब भाँति, पर हम आज हा ! बदनाम हैं। किसको भला हम दोष दें, जब आप ही हम गिर गये; बस नाश के कुरुक्षेत्र में डंके हमारे बज गये।। ३४३ ।। ६६
SR No.010242
Book TitleJain Jagti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherShanti Gruh Dhamaniya
Publication Year1999
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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