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________________ जैन जगती Peaceaercom ॐ अतीत खण्ड 8 कैसा निकाला संघ था सम्राट संप्रति ने कहो; शचि, इन्द्र जिनको देख कर थे रह गये स्तंभित अहो ! गज, अश्व, वाहन, शकट की गिनती वहाँ पर थी नहीं; नर-नारि को गिनती भला फिर हो सके सम्भव कहीं ?॥३२४ ॥ श्रीचन्द्र ३०५ गुप्त नृपेन्द्र ने, भूपेन्द्र कुमारपालनेराजर्षि उदयन शांतनिक, दधिवाहना जय पालनेसबने निकाले संघ थे, उल्लेख मिलते हैं अभी; सरवर मुदर्शन लेख लो, वह दे रहा वर्णन सभी ॥ ३२५ ।। चरम तीर्थकर भगवान् महावीर प्रभु पार्श्व को इतिहासवेता सम तरह हैं जानते; पशु-यज्ञ का कैसा किया प्रतिवाद, खण्डन जानते । प्रभु पाश्वे का,विभु वीर का यदि जन्म जो होता नहीं3 ०६; फिर इस नृशंसाचार का क्या पार कुछ रहता कहीं ? || ३२६ ।। वे त्याग कर प्रासाद को दुख-शैल कंटकमय चले; था चण्ड:०७ कौशिक ने डसा विभु वीर को,क्या मुड़ चले ? थे तोग्म कीले कर्ण में विभु वीर के ठोंके गये3०८; इससे हुआ क्या ? वीर कायोत्सर्ग से क्या डिग गये ? ॥ ३२७ ।। ज्यों वीर अर्कोदय हुआ, प्रातः हुआ तम छट गया; पशुयज्ञ के तिमिरावरण का जाल कुण्ठित उड़ गया। थे दुष्ट, लम्पट छिप गये, गलबंध पशु के कट गये; प्रानन्द घर-घर हो गय, फिर भाग्य जग के जग गये ।। ३२८॥
SR No.010242
Book TitleJain Jagti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherShanti Gruh Dhamaniya
Publication Year1999
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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