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________________ जैन जगती *3000mmer अतीत खण्ड दे दान कंचन का प्रथम जल-पान करना चाहिए; आये हुए का द्वार पर सत्कार होना चाहिए। नृप कर्ण,3९ राजर्षी बली' ये वीर दानी हो गये; ये प्राण रहते याचकों की तृप्ति मन की कर गये ॥ ६ ॥ गोपाल, यदुपति, नंदनंदन, गोप-वल्लभ, कृष्ण वा, राधारमण, मोहन, मधुसुदन, द्वारकापति विष्णु वा, गिरिधर, मुरारी, चक्र-पाणी एक के सब नाम हैं; मुरली पति वासुदेव के बस कर्म भी अभिराम हैं ॥ ६॥ लव-कुश४२ तथा अभिमन्यु जैसे वोर बालक थे यहाँ; रण-शौर्य जिनका देख कर सुर रह गये स्तंभित जहाँ । सुकुमार नेमिनाथ४४ का बल, आत्मबल भूलें नहीं; अन्यत्र ऐसे वीर बालक आज तक जन्मे नहीं ।। ६१ ॥ गणितज्ञ कितने हैं यहाँ ? हों सामने आकर खड़े गिनिये दयाकर वीर४५ में कितने कड़े संकट पड़े ? आदर्श ऐसे एक क्या लाखों तुम्हें मिल जायँगे; जग शान्तिपूर्वक ढूँढ लो; वे तो अनन्वय पायँगे ॥ २॥ पर हाय ! फूटे भाग हैं, इतिहास पूरा है नहीं; जिन पार्श्व प्रभु के पूर्व की तो झलक पड़ती है कहीं। हा ! एक सरिता की कहो ये शाख दो कैसे हुई ? ये जैन वैदिक निम्नगायें किस तरह क्यों कर हुई ? ॥ ६३॥
SR No.010242
Book TitleJain Jagti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherShanti Gruh Dhamaniya
Publication Year1999
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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