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________________ जैन जगती. *परिशिष्ट के लिये निर्दोष जन-सैन्य का रक्त न बहा कर वह (बाहुबल) और भरत परस्पर द्वन्द-रण करें और जो जीते उसी को राज्य मिले। यह प्रस्ताव भरत ने सम्मत कर दिया और अन्त में बाहुबल विजयी हुए। लेकिन बाहुबल राज्य न लेकर वन में विरक्त होकर तपस्या करने चले गये और भरत को राज्याधिकार दे गये। २३८-से २५१ देखो नं० १५ से २५ तक। विशेष वृत्त के लिये देखो त्रि० श० पु० चरित्र भाग १ से १० तक । २५२-चन्द्रगुप्त मौर्य-यह नन्दवंश का उच्छेदक प्रख्यात अर्थ-शास्त्री चाणक्य का शिष्य था। सम्राट चन्द्रगुप्त इतिहास में प्रसिद्ध है। यहाँ विशेष उल्लेख की आवश्यकता नहीं है। इतना कहना पड़ेगा कि जहाँ अन्य इतिहासकार सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य को बौद्ध मानते हैं, यह जैन था और श्रुतकेवली भद्रबाहू स्वामी का अनुयायी था। २५३-सिल्यूकस-यह सिकन्दर महान् का सेनापति था। इसने भारत पर आक्रमण किया था, लेकिन सम्राट चन्द्रगुप्त के आगे इसकी कुछ न चली और निराश होकर लौटा। सिल्यूकस ने अपनी लड़की का विवाह सम्राट चन्द्रगुप्त के साथ करके. सन्धि की थी। २५४-श्रीपाल-यह कोटिभट श्रीपाल के नाम से प्रसिद्ध है। इसने अपने जीवन में अनेक कटु कष्ट सहन किये थे। यह बड़ा वीर था, कहते हैं कि यह अकेला कोटि सुभटों से लड़ने को समर्थ था। इसकी पटरानी का नाम मैना सुन्दरी था। २३६
SR No.010242
Book TitleJain Jagti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherShanti Gruh Dhamaniya
Publication Year1999
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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