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________________ जैन जगतो, परिशिष्ट की बड़ी उन्नति थी। तत्रप सब जैन-धर्मी थे। देखो 'प्राचीन भारतवर्ष भाग ३ रा, पृ० २४५ त्रिभुवनदास लहेरचंद्र रचित । २२३-बनारस-यह २३ वे तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की राजधानी थी। उस समय के कितने ही शिल्प-कला के नमूने आज भी भूगर्भ में से देखने को मिलते हैं और यह ऐतिहासिक रूप से भी सिद्ध हो चुका है कि भगवान पार्श्वनाथ की राजधानी काशी (बनारस ) थी। २२४-ओरिसा-यह सम्राट महामेघवाहन खारवेल के समय कलिंग राज्यान्तर्गत एक प्रान्त था। इसकी उदयगिरि, खण्डगिरि की गुफायें उस समय के जैन धर्म की समृद्धि की श्राज भी पूरी २ झलक देती हैं। देखो उ० हि० मा० जैन धर्म, पृ०२२२ । ___ २२५-पावापुरी-यह जैनियों का प्रसिद्ध तीर्थस्थान है। यहाँ २४वें तीर्थंकर प्रभु महावीर का निर्वाण हुआ है। उनका यहाँ स्मारक मंदिर है। वह अति प्राचीन है और शिल्प-कला का उत्कृष्ट नमूना है। २२६-अमरावती-जैन इतिहास की दृष्टि से अमरावती एक प्रसिद्ध नगरी थी। परन्तु अभी तक अमरावती के ऐतिहासिक स्थल का पता नहीं लगा है। डा०स्मिथ अमरावती को मथुरा के पास कहते हैं, देखो उ० हि मां जैन धर्म पृष्ठ २२५ । डा०त्रिभुवनदास लहेरचन्द अपने इतिहास 'प्राचीन भारतवर्ष के प्र० भगा पृ० १५१ पर लिखते हैं कि वर्तमान में जो अमन
SR No.010242
Book TitleJain Jagti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherShanti Gruh Dhamaniya
Publication Year1999
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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