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________________ जैन जगती . 3000NRGar .परिशिष्ट . इसमें छोटे बड़े ८३ सौधशिखरी जैन-मन्दिर थे। प्रसिद्ध विद्वान मण्डन इसी नगर के रहने वाले थे। विस्तृत वर्णन के लिये देखो 'श्री यतीन्द्र-विहार-दिग्दर्शन भाग चतुर्थ पृ० १६६ । २१३-लक्ष्मणी-तीर्थ-यह तीर्थ अलिराजपुर स्टेट में आया है। इसके नाम से पता चलता है कि यह लक्ष्मण के समय में अगर नहीं था तो भी लक्ष्मण के नाम के पीछे अवश्य इसकी स्थापना हुई है। वैसे इसके भूगर्भ में से निकलती हुई वस्तुओं के अवलोकन से भी यह अति प्राचीन सिद्ध होता है । इस तीर्थ के स्थल को ज्यों-ज्यों खोदा जाता है, अनेक अद्भुत-अद्भुत वस्तुएँ उपलब्ध होती हैं। देखो श्री० य० वि० दि० भा० ४ पृ. २३० । ___२१४-अबुदगिरि-यह विशेष कर अभी आबू-पर्वत के नाम से प्रसिद्ध है । यह कहने की आवश्यकता नहीं कि जैन-तीर्थ की दृष्टि से इसका इस समय भी कितना महत्त्व है। वस्तुपाल तेजपाल का बनाया हुआ जैन-मन्दिर अब भी अपनी प्रकृत दशा में ही विद्यमान है। अनेक यूरोपीय शिल्प-शास्त्री इस मन्दिर को शिल्प-कला देखकर दंग रह गये हैं । इस मन्दिर के बनाने में.साढ़े बारह कोटि सुवर्ण मुद्रायें खर्च हुई थीं। ऐसा भव्य मन्दिर विश्व में भी अन्य कठिनतया ही उपलब्ध होगा। २१५-गिरिनारपर्वत-यह जूनागढ़ के पास आया है। भगवान् नेमिनाथ को दीक्षा, उनको केवल ज्ञान और उनका निर्वाण इसी पावन गिरि पर हुआ है । 'यह तीर्थ मूलतः जैनियों २३२
SR No.010242
Book TitleJain Jagti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherShanti Gruh Dhamaniya
Publication Year1999
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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