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________________ जैन जगती PRORMON ® परिशिष्ट थे और विक्रम की १५ वीं शती में विद्यमान थे। इन्होंने उपदेशचिन्तामणि, प्रबोधचिन्तामणि, 'जैनकुमारसंभवमहाकाव्य आदि अनेक प्रसिद्ध ग्रन्थ लिखे हैं। इनको तत्कालीन साहित्य-संसार ने कवि चक्रवर्ती की उपाधि प्रदान की थी। १५६-आनंदघन-ये महान आध्यात्मिक विरक्त साधु थे। ये विक्रम शती १७ वीं में विद्यमान थे। इनके पद्य बड़े प्रसिद्ध हैं । सूरदास के सदृश इन्होंने कितने ही पद्य रचे हैं। आनंदघन का सम्मान अब दिन-दिन बढ़ रहा है। १६०--जटमल-ये जैन नाहर गोत्र के थे। ये हिन्दी की खड़ी बोली के आदि लेखकों में गिने जाते हैं । 'गोरा बादल की बात' इन्होंने खड़ी बोली में लिखी है जो अधिक प्रसिद्ध है। प्रेमलता भी इनकी अधिक प्रसिद्ध है। अब धीरे धीरे इनकी अनेक फुटकल रचनाओं का पता लग रहा है। ये १६वीं शती में हुए है । ( कवि जटमल का परिचय वीणा मासिक पत्रिका के श्रावण माह ह सं० १६६५ के अंक में प्रकाशित पं० सयकरण पारीक एम० ए० के लेख क आधार पर दिया गया है।). १६१-आत्मारामजी-इनके विषय में अधिक लिखने की आवश्यकता नहीं। ये महान आचार्य अभी हाल में ही स्वामी दयानंद सरस्वतती के ही समय में हो चुके हैं। आपने अनेक ग्रंथ लिखे हैं और आज आपके नाम से कितनी ही सभाएँ, संस्थाएँ चल रही हैं। इनका विस्तृत जीवन-चरित्र भी निकल चुका है। इनका स्वर्गगमन सं० १९४० में हुआ है। १६२-यशोविजय जी उपाध्याय-ये महान पंडित साधु थे
SR No.010242
Book TitleJain Jagti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherShanti Gruh Dhamaniya
Publication Year1999
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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