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________________ जननगती *परिशिष्ट . मुगल सम्राट् जहांगीर के समय में भी हो चुके हैं। ये भी बड़े विद्वान आचार्य थे और इन्हें 'वादी' की उपाधि थी। १४७-हेमचन्द्रसूरि-ये प्रसिद्ध श्राचार्य अभयदेव सूरिजी के शिष्य थे। ये १२ वीं सदी में हुए हैं। इन्हें 'मल्लधारी' की उपाधि राजा सिद्धसेन ने अर्पण की थी। इन्होंने जीव-समास, भवभावना, शतकवृत्ति, उपदेशमालावृत्ति' आदि अनेक अमूल्य प्रन्थ लिखे हैं। १४८-हरिभद्रसूरि-ये आचार्य भी संस्कृत के अजोड़ विद्वान थे। ये विक्रम की छठी शती में हो गये हैं। इन्होंने कुल मिलाकर १४४४ प्रन्थ लिखे हैं । जंबूद्वीप-संग्रहणी, दक्षवेकालिकवृत्ति, ज्ञानचित्रिका, लग्नकुण्डलिका योगदृष्टिसमुच्चय, पंचसूत्रवृत्ति इत्यादि। एक इसी नाम के आचार्य १२ वीं शताब्दि में भी हो गये हैं। ये भी बड़े शक्तिधर आचार्य थे। इन्हें लोग कलिकालगोतम कहते हैं। इन्होंने भी 'तत्त्वप्रबोधादि अनेक प्रन्थ लिखे हैं। १४६-श्रीपाल-यह सौराष्ट्रपति राजा सिद्धसेन के समय में हुए हैं। ये महाकवि थे और राजा इनका बड़ा संमान करता था। १५०-परिमल-ये बड़े भावुक कवि और विद्वान थे। १५१-धनंजय-इस नाम के एक महाकवि विक्रम की वीं शती में हो गये हैं। इन्हें समस्त संस्कृत-साहित्यिक-संसार जानाता है। इनके बनाये हुए अनेक ग्रंथ अति प्रसिद्ध हैं। 'द्विसंधानमहाकाव्य' जिसके प्रत्येक श्लोक से दो-दो कथाओं का २२३
SR No.010242
Book TitleJain Jagti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherShanti Gruh Dhamaniya
Publication Year1999
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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