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________________ न चलता देखकर यह जिला खींच कर पंचत्वगति को प्राप्त हुई थी। १०७-मदनरेखा-यह राजा युगबाहु को पतिपरायण राणी थी। युगबाहु को इसके देवर मणीरथ ने मार डाला था और इसे उसको प्रिया बनने के लिये अनेक प्रलोभन व संकट दिये थे। अन्त में यह प्रासाद छोड़कर भाग निकली थी और दीक्षा ग्रहण कर चारित्र पालने लगी थी। १०८-नर्मदा-यह महेश्वरदत्त की पतिव्रता स्त्री थी। इसने आचार्य सुहम्ति के पास दीक्षा ग्रहण की थी। १०६-सुलसा-यह परमहंसा महिला थी। इसके बत्तीस पुत्रों का मरण एक साथ हुआ था, लेकिन यह उनके मरण पर तनिक भी शोकातुर नहीं हुई थी। और अपने पति को धर्म का प्रतिबोध देकर उसे इसने शोक-सागर में डूबने से उबारा । अन्त में इसने भी दीक्षा लेकर चारित्र-व्रत का पालन किया। ११०-मुसोमा-यह श्रीकृष्ण वासुदेव की पतिपरायणा राणी थी। इसके शील की परीक्षा देवों ने अनेक प्रकार से ली, लेकिन यह परीक्षा में सदा खरी उतरी। अन्त में इसने भी दीक्षा लेकर चारित्र-धर्म का पालन किया। १११-अंजना-यह हनुमान की माता और पवनकुमार की पतिव्रता राणी थो । अंजना की कथा प्रायः सर्वत्र प्रसिद्ध है। ११२-पद्मावती-यह राष्ट्रपति चेटक को पुत्री चम्पानरेश दधिवाहन की पतिपरायणा राणी और करकंडू की माता थी। इसने भो दीक्षा लेकर चारित्र-व्रत ग्रहण किया था। २४५
SR No.010242
Book TitleJain Jagti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherShanti Gruh Dhamaniya
Publication Year1999
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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