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________________ जैन जगती परिशिष्ट समकालीन है । आपने भी राजा भोज के विद्वदगणों को निष्प्रभ कर दिया था । श्रतएव राजा भोज ने आपको 'वादी वेताल' की उपाधि प्रदान की थी । ८२ - खप्पभट्टाचार्य - इन्होंने मथुरा के राजा आम को जैन-धर्मी बनाया था । आम राजा दुराचारी और स्त्रीलंपट था । आम राजा ने ज्योंहि जैनधर्म स्वीकार किया कि सारी मथुरा नगरी जो शैव थी जैन धर्मानुयायी बन गई । ८३ - जिनदत्तसूरि-ये खरतरगच्छ के महा प्रसिद्ध आचार्य हो चुके हैं। आज भी स्थान २ पर आपके नाम से दादाबाड़िये मौजूद हैं। आपने जैनधर्म का अतिशय विस्तार-प्रचार, किया था । ये आचार्य १२ वीं शती में हुए हैं । ८४ - जिनकुशलसूरि-ये खरतरगच्छ के आचार्य थे। आपने 'चैत्यवंदनकुल वृत्ति' नाम का ग्रंथ लिखा है । ८५ - जिनप्रभसूरि-ये प्रगाढ़ विद्वान थे । इनका ऐसा नियम था कि प्रत्येक दिन कोई नव स्तोत्र, सूत्र रच कर ही अन्नजल ग्रहण करना । इन्होंने 'द्वचाश्रय महाकाव्य' लिखा है । इनका काल १४ वीं शती है । ८६ - चन्द्रकीर्तिसूरि- इन्होंने 'सारस्वतव्याकरण' 'चन्द्रकीर्ति' नाम की टीका लिखी है । ८७- प्रभाचन्द्रसूरि-ये आचार्य १४ वीं शती में हुये हैं। इन्होंने 'प्रभाविक चरित्र' नामका ऐतिहासिक ग्रन्थ लिखा है। - आर्य आशाधर – ये संस्कृत के प्रख्यात पण्डित थे । इन्होंने 'कुवलयानन्दकारिका' नामक अलङ्कार का ग्रन्थ लिखा है। २११ पर
SR No.010242
Book TitleJain Jagti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherShanti Gruh Dhamaniya
Publication Year1999
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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