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________________ ॐ वर्तमान खण्ड ® जैन जगती PRECORREEN हाट-माला जी! दखिय ये शाह हैं, ये स्नान है करते नहीं; इनको बदलने वस्त्र भी अवकाश है मिलते नहीं। है हाट इनकी शूद्र-सी, दुर्गन्धयुत सामान है; पर शूद्र तो ये है नहीं, ये शाह जी श्रीमान हैं ॥२७०।। जीरा, मसाला, तेल इनका तोलना ही काम है; इन शाह जी ने तोलने में ही कमाया नाम है। जितने तरल, रस, पाक हैं-मिश्रण बिना नहिं एक है; दूना, तिगूना कर चुके, पर भाव फिर भी एक है ॥२७१।। व्यापार में बढ़ती इधर ये कुछ दिनों से कर रहे; दिन रात इनके ग्राहकों से हाट घर है भर रहे। सर्वत्र कन्या-माल की है माँग बढ़ती जा रही ; कन्या कुमारी मोहरों से आज तोली जा रहीं !!! ॥२७२।। पुखराज, मानिक, रत्न के व्यापार होते थे यहाँ !अब देख लो चूना कली के ढेर हैं बिकते यहाँ ! जीवादियुत धानादि के भण्डार भी मौजूद हैं ! दोगे न यदि तुम दाम, तो दो सैकड़े पर सूद है ॥२७३।। जी ! यह बड़ा बाजार है--श्रीमान, शाहूकार हैं; दिनरात सट्टा, फाटका ही आपका व्यापार है । ये सब विदेशी माल के ऐजेन्ट, ठेकेदार हैं; इस ऐश के इनके विदेशी नाथ ही आधार हैं !! ॥२७४।। १३६
SR No.010242
Book TitleJain Jagti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherShanti Gruh Dhamaniya
Publication Year1999
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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