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________________ , जैन जगती BACCINE ॐ वर्तमान खण्ड खण्डन, स्वमण्डन के सिवा होती न शिक्षा है यहाँ ! बस साम्प्रदायिक सैन्य ही तैयार होता है यहाँ ! चटशाल, छात्रावास, गुरुकुल फुट के सब बीज हैं ! इनके बदौलत आज रे! हा! हम अकिंचन चीज़ हैं !! ॥ १५५ ।। आश्चर्य क्या गतिचार का शिक्षण यहाँ संभव मिले ! हा ! क्यों न ऐसे गुरुकुलों में मृष्टि-शिक्षण वर मिलें ! शिक्षक गणो ! तुम धन्य हो; हे तंत्रियो ! तुम धन्य हो ! निर्बोध बच्चों के अहो ! माता-पिता ! तुम धन्य हो ! ।। १५६ ॥ चालक यहाँ सब मूर्ख हैं, आता न अतर एक हा! यदि अड़ गय-मर जायँगे-देंगे न जाने टेक हा ! इनमें कहीं पर धेनु-से भोले तुम्हे मिल जायँग ! विश्वास देकर दुष्ट गण उनको अहर्निश खायँगे !! ।। १५७ ।। विद्याभवन आये दिवस हर ठौर खुलते जा रहे; फिर बैठ जाने फेन-से, ये दीप बुझने जा रहे ! यह जैन गुरुकुल सादड़ी का बंद हा ! कैसे हुआ ? इसको न थी कोई कमी यह भग्न गति कैसे हुआ ?॥१५- ।। होगा भला इनसे नहीं, हे भाइयो ! खोलो नयन; हा ! ये न विद्यावास हैं, है ये सभी गंगायतन ! जब तक व्यवस्था एक विधि सब की न बनने पायगी; उत्थान-तरुवर-शाख हा! तब तक न फलने पायगी ।। १५६ ।। ११३
SR No.010242
Book TitleJain Jagti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherShanti Gruh Dhamaniya
Publication Year1999
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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