SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मनुष्य ठीक रास्ते पर आगये अर्थात् वे जैन धर्म के पवित्र और असली सिद्धान्तों के अनुयायी बन गये । स्थानकवासी नाम क्यों धारण किया गया। जैन धर्म के इन सच्चे अनुयायियों का उपनाम मूर्ति पूजकों ने वैरभाव के कारण दूढिया रख दिया। अपने आपको मूर्ति पूजकों से पृथक रखने के लिये लोकाशाह के अनुयायि, बल्कि यों कहना चाहिये कि महावीर के असली उपदेशों के सच्चे भक्त अपने आपको स्थानकवासी कहने लगे। द्वेष के कारण मूर्ति पूजक श्वेताम्बर, स्थानकवासियों को मूल संघ की एक शाखा बतलाते हैं और यों कहते हैं कि स्थानक. वासियों की उप्तत्ति को केवल ४०० वर्ष हए हैं। लोकाशाह जैन धर्म के असली सिद्धान्तों के प्रचारक थे। __ ऊपर के पृष्ठों में यह बात अच्छी तरह सिद्ध कर दी ___ गई है कि स्थानकवामी सम्प्रदाय जैसा कि मूर्ति पूजक कहते है, जैन धर्म की शाखा नहीं है, द्रव्योपार्जन करने वाले साधुओं __ की स्वार्थ परता के कराण ही प्रायः जैन समाज भलनी दिशा पर और कुर्मार्ग पर चला गया। केवल एक दैवी घटना के कारण ही लोकाशाह को असली सूत्रों के दर्शन हुए और इस
SR No.010241
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy