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________________ ८५ स्वार्थता का भंडाफोड कर दिया और शास्त्रों मे लिखे हुए असली जैन सिद्धान्तों का प्रचार शुरू कर दिया । शीघ्र ही कुछ मनुष्य उनके अनुयायी हो गये और उनकी सहायता से उन्होने पवित्र और असली सिद्धान्तों का प्रचार करना शुरू कर दिया | इस प्रकार बहुत से उन्मार्गगामी मनुष्यों को सन्मार्ग पर लगा दिया । जब स्वार्थी साधुओ को अपनी अवस्था डांवांडोल और शोचनीय हो जाने का तथा मान्यता नष्ट हो जाने का भय हुआ तब उन्होंने लोकाशाह और उनके अनुयायियों का छल करना शुरू कर दिया । उन्होंने लोकाशाह पर बुराइयों की दृष्टि करना और उनके अनुयायियों के चारित्र को कलंकित करना चाहा । अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए और एक बडी भारी संख्या के विरोधी समाज का सामना करते हुए लोकशाह और उनके अनुयायियों ने उसी जोर शोर के साथ अपना पवित्र उपदेश पत्र काम जारी रक्सा । स्वार्थी माधुओं की मान्यता शीघ्र ही घटने लगी और लोगों के बु के सुड शीघ्र ही लोकाशाह की शरण में आने लगे । लोकाशाद ने सम्यक्ज्ञान रूपी दीपक का प्रकाश किया और यह प्रकाश भारत वर्ष के एक सिरे से दूसरे निरे तक शत्र कल गया और शांति का साम्राज्य छागया । सत्य के प्वाजल्यमान प्रवाश में अमल और धूर्तता का लोप होने लगा और चारों वर्ष के भीतर ही पाच वास भूले हुए
SR No.010241
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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