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________________ अपने भाग्य का विधाता स्वयं ही है, उसका भविष्य सर्वथा उसी के कर्मों पर, अवलम्बित है और अनंत शान्ति तथा सुख प्राप्त करने के लिए देवताओं अथवा देवियों का पूजन आवश्यक नहीं है। तीर्थकरों ने इन सिद्धान्तों का केवल उपदेश देकर ही सन्तोष न किया, किन्तु उन्होंने अपना जीवन भी अपने बतलाए हुए आदर्श के अनुसार बना लिया और वे दूसरों को जिन श्रेष्ठ उपदेशों का अनुगामी बनाना चाहते थे उन्हीं आदर्श उपदेशों के उदाहरण उन्होंने स्वयं अपने जीवन में दिनाये । सभी श्रेष्ठ और दैवी गुण तीर्थकरों के जीवनों में गर्भित हैं और इन सद्गुणों की प्राप्ति को प्रत्येक जैन धर्मानुयायी को अपना सौभाग्य समझना चाहिये । इसलिये जैनधर्म के असली भाव समझने के लिए व आंतरिक मर्म से तादात्म्य होने के वास्ते यह आवश्यक है कि जैन शास्त्रों के अर्थ इन पवित्र तीर्थंकरों के जीवनों की घटनाओं की सहायता से लगाये जाये, और जब इस प्रकार अर्थ लगाया जायगा तब मालूम होगा कि जैन तीर्थकरों के जीवन-चरित्र में मूर्ति रजा का लेश भी नहीं है । ___उन्होंने मुक्ति प्राप्ति के लिए मूर्तिपूजा का कष्टरहित मार्ग प्रण नहीं किया। उन्होंने निर्वाण पद पाने के लिए पापाण की मूर्तियों के सामने चार में डाल देने वाली
SR No.010241
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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