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________________ (६४) यह बात बडी विचित्र और महत्वपूर्ण है। इससे सिद्ध होता है कि मूर्तिपूजा की प्राचीनता के पक्ष में मूर्तिपूजकोंकी दलील बहुत कमजोर है। यदि मूर्तिपूजा वास्तव में इतनी प्राचीन होती जितना कि मूर्तिपूजक बतलाते हैं, तो हम को अवश्यमेव कुछ मूर्तियाँ भी ऐसी मिलती जिनके संवत और लेख मूर्तिपूजकों के पक्ष की पुष्टि करते । __ यदि हम इस प्रश्न पर दूसरी दृष्टि से विचार करे, तो मालूम होगा कि तीर्थकरों के सिद्धान्त और जीवन ऐसे स्वाभाविक हैं और जैनधर्म के उपदेश ऐसे उदार हैं कि इस बात की तनिक भी संभवना नहीं की जा सकती कि तीर्थंकरों ने पत्थर और धातुओं की मूर्तियों को पूजने का आदेश दिया हो अथवा मूर्तिपूजा का किसी और प्रकार से उपदेश किया हो। तीर्थकरों ने मोक्ष-मार्ग बतलाते हुए श्रीमंतों को तथा कंगालों को, बडों को तथा छोटों को अपने शिष्यों को तथा विद्यार्थियों को अर्थात् जानिपॉति का भेदमाव छोडकर सब को यह समान उपदेश दिया है कि प्रत्येक जीव को अपने कमों का नाश ( निर्जरा करने ही से मुक्ति मिल सकती है और कमों का नाश-इन्द्विय दमन, स्वार्थत्याग, अमित दया, आत्मनिरोध, घोर तप और अपरिग्रह के द्वारा हो सकता है। उन्होंने स्पष्ट रीति से इस सत्य का उपदेश दिया है कि मनुष्य
SR No.010241
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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