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________________ ( ३४ ) असाधारण ( ७ ) " हमारा वादविवाद यहीं पर समाप्त होता है । मैं आशा करता हूं कि इससे यह सिद्ध हो गया है कि जैन धर्म के विकास मे किसी समस भी किसी घटना के कारण कोइ बड़ी रुकावट पैदा नही हुई । हम इस विकास को शुरू से अबतक क्रमशः देख सकते हैं और जैन धर्म दूसरे धर्मों से व विशेषकर बौद्ध धर्म से इतना स्वतंत्र है जितना कि कोई धर्म हो सकता है । इस विषय का विस्तारपूर्वक विवेचन भविष्य की खोजो से हो सकेगा परंतु मैं आशा करता हूं कि जैन धर्म की स्वतन्त्रता के विषय में और जैन धर्म के प्राचीन इतिहास के निर्माण के लिये जैन शास्त्रों के विश्वसनीय होने मे कुछ विद्वानों को जो संदेह है उनको मैने दूर कर दिया है " । ऊपर की दलीलों से स्पष्ट होगया होगा कि प्राफेसर हरमन जेकोबी ने ईसा से पूर्व तीसरी सदी तक अर्थात् महावीर के दोसौ वर्ष बाद तक जैन सिद्धान्त की प्राचीनता संतोष पूर्वक क्रमानुसार दिखला दी है । अव हमको केवल दोसौ वर्ष के उस मध्यवर्ती समय को पूरा करना है जो महावीर के निर्वाण काल और प्रोफेसर जेकोबी द्वारा निश्चित जैन सिध्दान्तो के उत्पत्ती काल के बीच मे पडता है । इस कार्य के लिये हमको यह जानना आवश्यक है कि इस विषय मे जैन साहित्य क्या कहता है ? जैन ग्रंथों मे
SR No.010241
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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