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________________ हितकारी होता है. जो लोकभिय होनेकी चाहते हो तो उक्त विव समालक धर्मका वाध न आवे तैसा निपुण भाषण करना शीखो. तैसा समयोचित विनय वचन वशीकरण समान समझना. कहाभी है कि एक बोलवो न शीख्यो सव शीख्यो गयो घरमें !' ४९ विनय सेवन करना चाहिये. नम्रता, कोमलता, मृदुता वगेरे पर्यायवाची शब्द हैं सो सब विनयकेही है. विनय सब गुणोंका वयार्थ प्रयोग है. विनयसें श भी वश होजाता है. विषेकसें गुणिजनोंका कीयाहुवा विनय श्रेष्ठ फल देता है. और विनय विगरकी विधाभी फलीभूत नहि ५० दान देना. ___ लक्ष्मीवत होकर सुपात्रादिकों विकसें दान देना सोही लक्ष्मीकी शोभा वा सार्थकता है. विवेकपूर्वक दान देनेवालेकी ल. क्ष्मीका व्यय कीये हुवेभी कुवेके पानीकी तरह निरंतर पुण्यरुप आमदनीसें बढती होती जाती है. विवेक रहित पनेसे व्यसनादिमें उडादेने वालेकी लक्ष्मीका तत्वसें द्धि विनाही तुरंत अंत आजाता है. सूम-कंजुसकी लक्ष्मी कोइ भाग्यवान् नरही भुक्तता है व्यर्थ करके लाभ प्राप्त करता है; परंतु ममण शेठकी तरह तिनसें एक दमडीभी शुभ मार्गमें खर्ची नहि जाति, और न वो बिचारा तिसको उपभोगभी लेसकता; पुर्वजन्ममें धर्मकार्यकी अंदर गडबड डालनेका यह फल समझकर दानांतराय नहि करना.
SR No.010240
Book TitleJain Hitbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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