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________________ २४४ . उस वास्ते अगत्यका कथन है कि-' कहने करते करके बतलानाही अच्छा.' मोक्षार्थी-मुमुक्षुजन सद्वर्तनवाले शुद्धाशय संत सुसाधुजनाका बहुत मानपूर्वक सेवन करते हैं. इष्टफलकी सिद्धिक वास्ते कल्पवृक्ष-कामधेनु-सुरमणि या भंगलकलश जैसे उ. माहात्माओका सद्भावसें आश्रय लेते हैं. अनेक मोक्षसुखके अर्थी सज्जनों के आश्रयरु५ आप साधुजनोंको कैसी उमदा चालचलन रखनेकी जरुरत है. वो सहजहीमें समझा जाय वैसा है. . .८ तालीम-व्यवहारिक और धार्मिक ऐसे दोनुमकारकी मज पूत तालीम देने की जरुरत है. अचलकी प्राथमिक तालीमके किरजोसें तत्त्वजिज्ञासा प्रकट होती है, उसे योग्य पोषण मिलजानेसें . सत्य तालीम विकसित हो सकती है. कि जो परिणाममें अपना पराया हित सिद्ध करसकती है. पास्ते उदार सखावतें करके ये खातेको आजकल यशस्वी करनाही दुरस्त है. उनमें जितनी वेदरकारी उतनाही र५परको नुकशान है, ९ निकगे लखलूट खर्च-फजूल बावतोंमें जो हुवा करतो हैं वो उसी द्रव्यके अंदरको कुछ हिस्साका, उपयोगी मजबूत तालीमके वास्ते और दुःख दुर्दशावत क्षेत्रोंको अच्छी मदद देनेके वालो यदि खर्च करनेमें आवै तो तो उमीद है कि कम ज्याद वरूतमें भी अपनी स्थिति सुधर सकेगी. वास्ते लाजिम है कि, अपनी अपनी ‘पदासके मुजव दरसाल ऐसे धर्मकार्य सुधारनेके वास्ते कुछ
SR No.010240
Book TitleJain Hitbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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