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________________ २१५ जिस बहुत करके दोप के दायसें छूटकर आत्माका बचाव कर लिया जाता है. अन्यथा अनेक दोपों के संकटोमें बेरघर गिरनेका परत आ जाता है; वास्ते उक्त द्रव्य के सदुपयोग पूर्वक उनकी रक्षा या वृद्धि भी देवयकी तरह विवेक और संत रखकर करनी जिसे पवित्र शासनकी दिन प्रतिदिन उन्नति हुवा कर ___ दोनु मकारके द्रव्यसें साधारण द्रव्य तर्फ कम ध्यान खचिने लायक नहीं है, क्योंकि उन दोनुको पथ्याहारकी तरह पुष्टि देनेहारा साधारण द्रव्य है. सच्ची रीतिसें वो उभयको पुष्टिजनक होनेसेही साधारण कहा जाता है. वास्ते साधारण द्र०यकी पुष्टि करनेहारेको पूर्व उभयकी पुष्टिका फल मिल सकता है. और साधारण द्रव्यका लोप करनेहारेको पुर्वोक्त उभयकी हानिका फल मिलता है. मसंगपर कहना मुनाशीब है कि आजकल साधारण खाता बहुतही डूबता हुवा होनेसे दूसरे खातकों भी बहुत करके धका लगता है; पास्ते दूसरे खाते करतें भी साधारण खातेकी तर्फ भव्य पाणियोंकों खास ज्यादे लक्ष देनेकी जरुरत है. कितनेक अज्ञानी जीव तो अपने संबंधीओंके मरन पश्चात् कुछ रकम गोलमोल कहकर या कुछ रकम धर्मादमें कहे पाद भी आप अपनी भोज मुजब उस व्यका उपयोग करके आपकों निर्दोष मानता है, सो न्याय युक्त नहीं. तरु५-फलाने शाहुकारका फलाने दिनसे बाकी निकाल दिये वाद जैसे उनको व्यान सहित आखिर भरपाया
SR No.010240
Book TitleJain Hitbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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