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________________ - 1- 1 भिग्रह विशेष मुकरीर धारन करना उसीका नाम पच्चलखाण है. विवेकपूर्वक पचरूखाण करनहारेके सब गुणकी पुष्टि करना है; वास्ते आत्मार्थी सजनोंको अवश्य आदरने योग्य है. उपर कहे हुए छउँ आवश्यक सदभावसे सेवन करनेहारको उत्तम सुख देते हैं, उससे ज्यौं बन सके त्यौं तत्संबंधी विशेष समझ मिलाकर उनको यथाविधि सेवन करनेकी खास जरुरत है. पव्वेसु पोषहवयं, दाणं शीलं तवीअभावी सज्झाय नमुकारों, परोक्यारोअ जयणाअ. १ पाँचवा-पर्व-दिन पोषव्रत अवश्य ग्रहण करना. हरेक महीने में हरेक अष्टमी, चतुर्दशी आदिक पर्व दिन आते है. ज्ञानसौभाग्य पंचमी, मौन एकादशी, तीन चातुर्माशी, पर्दूषण, चैत्री, कार्तिकी पूर्णिमा, यावत् जो जो अतीत-अनागत-वर्तमान जिनेश्वरजीके कल्याणक दिन होवे उन उन सबको पर्वदिन कहे.जाते. हैं यतः- करी सको धर्मकरणी सदा, तो करो एह उपदेशरे; सर्वकाळे करीनवि सको तो करो पर्व सुविशेषरे. विरतिए मुंमति घरी आदरो, उन दिन यथाशशि उपवास, आयंबिल, एका सनादिक तप करना. शरीर-शोभाका त्याग करनीः अहोरात्रि अखंड ब्रह्मचर्य पालन करना, और सर्व पाप व्यापारका त्याग करना ये चार प्रकार से पोषध व्रत भीतिसे अंगीकार करके यथा विधि पालन करना. कभी किसी कारणसे संपूर्ण चारों वापत न धनसके तो उन अंदर से जितनी बन सकै उतनी तो विवेकपूर्वक
SR No.010240
Book TitleJain Hitbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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