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________________ युक्त बतलाये है. उन्होंको सयज्ञ करके त्याग करनेवाला नरक गतिसें अपना बचाव करके सुखपृषक मोक्षपुरीमें जा सकता है. पारते उन व्यसनोंकी समझ मिलाने के वास्ते संक्षिप्त वर्णन करते हैं. मांस भक्षण १, मदिरा पान २, शिकार खेल ३, परस्त्रीगमन. ४, वेश्या-नगरनायका गमन. ५, चोरी. ६, जुगार.७, यह सातों व्यसन महा पापमय और यहलोक परलोक विरुद्ध होनेसे बिलकुल दुःखके देनेहारे हैं. इन सातो व्यसनकी अंदरके एक व्यसनसें भी पराव पाया हुवा प्राणी आखिर जरुर पायमाल हो जाता है, तो इन सातो व्यसनफे सेवनेवालों के लिये तो कहनाही कया? ! इन वस्तुओंके अत्यंत व्यसनवाले लोग पडे नीचकमक करनेवाले होनेसें इस जहाँमें भी बहुत धिकारको पाते हैं बडे दंडकी शिक्षा उठाते हैं. यावत् वेमौत-असमाधि भरणसें इस दुनियांको छोडकर चले जाते हैं. और जन्मजन्ममें नरक निगोदादि के अनंत दुःख-अनंतवार पाते है. नरकके अंदर परमाधामी वगैरः कठिनमें कठिन वेदना देते हैं. वहां किसीका शरण भी नहीं, गिरपडनेपरभी लातोंका मार पडनेकी तरह या जल गये हुवे पर लूनको लगानेकी तरह परमाधामी पूर्वकृत महान् पापोंको सुना सुनाकर वहत बहुत संताप देते हैं. वो सब सहन न होनेसे वै महा पुकार करते हैं; मगर वो पुकार सुनकर किनके दिल में दया पैदा होवैकिसीकों भी लेश दया नहीं आती. वज्र जैसी कठिन छातीवाले परमाधामी ऐसे पापीओंकों पीडते ही जाते हैं, उस वस्त पूर्वकृत
SR No.010240
Book TitleJain Hitbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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