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________________ · ११३ बच्चाको सुखी करनेकी चाहतवाले -मावाप वैसी कुसंगतिसे लडके અદજી, વવા રનવં ગૌર સમિતિએ મા તેને વહીવંત - रखकर उसको अमल में ले. यदि ऐसा न करेंगे. तो पैसे मावापोको बाल बच्चों के हित करनेवाले नहीं मगर बेधडकस अहितबुरा करनेवाले ही कहेंगे. वै मावित्र नहीं किंतु हे दुश्मन ही समझो गयौं कि उन्होने अपने बाल पचोंको जान बुझकर या वेदरकारीसें सद्गतिका मार्ग बंधकर दुर्गतिका मार्ग खुल्ला कर दिया है, उलटे रस्ते पर पड़ा दिये है; वास्ते बालकका जन्म हुवेके पेस्तर भी गर्भमें उसकोहरकत न होवे उस तरह विषय सेवन संबंधमें संतोषयुक्त मावापोंकों रहना चाहिये. ज. हुवे बाद कुछ . पोलना शिख लेवै तव तक, या वाल्यावस्था तकमें वो बच्चा अपशब्द न सुने या बोले नहीं, तथा सूक्ष्म जंतूको भी मारनेका नसीखै और न मारे जैसा उपयोग देनमें मावित्रोंको घडी खबरदारी रखनी चाहिये और उसको किसी पदचाल चलन द खिसलत पाले लोगोंकी सोबत न होने पावैउनकी बडी फिक्र और तजवीज रखना चाहिये. जब समझके घरमें आया के तुरंत उसको अच्छे . विधागुरु या धर्मगुरुके वहां सोंप देना चाहिये. कि जो विद्याधर्मगुरु उनको विनय वगैरः सद्गुणोंका अच्छे प्रकार सह पूर्ण . शिक्षण दव, जिस्स प्राप्त भइ हुई विद्याकी सफलतारूप वो विवेक रत्न प्राप्त कर सके. अन्यथा कुसंग कुच्छंदके योगसे विनय विद्याहीन रहनेसें विवेक रहित पशु जैसी आचरणा करता हुवा जंगलके रोक्षकी तरह भवावीमें भटकता फिरता है. .
SR No.010240
Book TitleJain Hitbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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