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________________ ११० अपने मुग्ध भाइ और भगिनी कितना बहुत अनर्थ सेवन करते है सो ध्यानमें रख्खो ? पूर्व तथा उत्तरके देशोंकों छोडकर आजकल यहां के अज्ञ जीव इन मुंठकी पावतमें बहुत अधर्म सेवन करते है उनका नमूना देखो ? सभी कोई कुटुंबी या ज्ञाति भाइयोंके वास्ते 'पानी पीने के लिये रखे हुवे वरतनों से पानी निकालने भरनेके . लिये एक इलायदा बरतन-लोटा अगर प्याला नहीं रखते हैं; मगर जिसी बरतनसे आप मुंहको लगाकर पानी पीते है, वस वही झूठे जलयुक्त वरतनसें पुनः उसी जल भरित परतनकी अंदरस पानी निकाल कर आप पीते है या दूसरोंको पिलाते हैं, जिसे शास्त्र मर्यादा मुजब उन जल भाजनमें असंख्यात लालिये समूर्छिम जीव पैदा होते हैं यानि वो जलभाजन (पानीका परतन) क्षुद्र अति सुक्ष्म जीवमय हो जाना है, उन्हीकों, मुंह लगाकर झुंठ। परतन पानी भरे हुवे परतनेमें डालने वाले अज्ञ पशु जैसे निर्विवेकी जी पीते हैं जैसा कहना अयोग्य नहीं होगा. झूठा अ.. या 'पानी अंतर्मुहर्स उपरांत अविवेके या प्रमादसें रख छोड़ने वाला इस तरह असंख्य जीवोंकी विराधना करने वाला होता है. जैसा समझकर हृदय ज्ञान, मगजमें भान लाकर परभवसे डरकर जिस प्रकार वै असंख्य जीवोंका नाहक-मुफत संसार न होवे उस प्रकार चेतने रहना योग्य है यानि खाने पीने की वस्तुमें झुंठा पात्र हाथ न डालना और न झूठा बनाकर दूसरेको देना. उसी तरह गत दिनका ठंडा भोजन पदार्थ, धुप दिखाये विगर
SR No.010240
Book TitleJain Hitbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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