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________________ जैन साहित्य में सती सीता जीवन तो सभी जीवों का होता है परन्तु उनसे, जिनमें लोकहित की विशेषतायें होती हैं उन्हीं का महापुरुष अवलोकन करते हैं तथा उन्हें विश्व के समक्ष प्रस्तुत करते हैं । जैनाचार्य महासनसूरि ने 'सिया-चरिउ' नामक ग्रन्थ में ऐसी ही एक महासती सीता के जीवन चरित्र पर लिखा। देश में असंख्यात सतियां हुयीं, पर महासती सीता की अलग ही बात है। उनका एक अपना स्वतन्त्र चिन्तन है। आज भी यदि देश में सतियाँ हैं तो वे ऐसी ही महासतियों की कृपा से हैं। श्रीराम के कहने पर सीता जी ने अग्निपरीक्षा देकर भारत का ही नहीं, विश्व के स्त्री समाज का सिर ऊंचा किया। महासन सूरि ने लिखा है कि सीता जी कहती हैं कि सम्यकत्व से ही स्त्री पर्याय को छेदा जा सकता है और मुक्ति को प्राप्त किया जा सकता है । अहिंसा, सत्य, अशौर्य, अपरिगृह और ब्रह्मचर्य को पाल कर ही हम अपनी आत्मा को परमात्मा बना सकते हैं। आचार्य तुलसी ने भी अपने खण्ड काव्य अग्नि-परीक्षा की प्राथमिकी में लिखा है कि जैन परम्परा में राम और सीता का वही महत्वपूर्ण स्थान है जो अन्य धार्मिक परम्पराओं में है । जैन कवियों ने विभिन्न युगों में, विभिन्न भाषाओं में विरिचित काव्यों १-विद्यानन्द मुनि : मंगल प्रवचन-पृष्ठ २२६
SR No.010239
Book TitleJain Hindu Ek Samajik Drushtikona
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mehta
PublisherKamal Pocket Books Delhi
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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